शनिवार, 28 दिसंबर 2013

………ऐसी सजा…………कि आप वैकुण्ठ-वास के अधिकारी हो गये……

भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु की लीला में आये श्री देवानन्द पण्डित, पूर्व जन्म में श्रीनन्द महाराज जी की सभा के सभा-पण्डित भागुरि मुनि थे।

श्रीवास पण्डित के चरणों में श्रीदेवानन्द पण्डित द्वारा अपराध होने के बहुत बाद एक दिन श्रीमहाप्रभु जी श्रीदेवानन्द पण्डित को भक्तिहीन भाव से भागवत व्याख्या करते देखकर देवानन्द पण्डित की तीव्र भर्त्सना की। वैष्णवों की निन्दा के द्वारा जिस प्रकार भगवद् कृपा से वन्चित होकर दुर्गति प्राप्त होती है, उसी प्रकार वैष्णव महिमा के कीर्त्तन से और वैष्णव सेवा द्वारा भगवत् कृपा लाभ और दुष्कर्मों से छुटकारा पाने का सुयोग मिलता है।

बहुत सौभाग्य से श्रीमहाप्रभु के प्रिय पार्षद श्रीवक्रेश्वर पण्डित, श्रीदेवानन्द पण्डित के घर पर ठहरे। देवानन्द पण्डित जी, श्रीवक्रेश्वर पण्डित की सब प्रकार से सेवा करके श्रीमहाप्रभु की कृपा के पात्र बन गये। श्रीमहाप्रभु जी के प्रति श्रीदेवानन्द पण्डित को विश्वास न था। श्रीवक्रेश्वर पण्डित से श्रीमन् महाप्रभु जी की महिमा सुनकर उनके हृदय में परिवर्तन हुआ तथा श्रीवक्रेश्वर पण्डित के प्रभाव से उनको शुद्ध भक्ति में विशिष्ट अनुराग हो गया था। वैष्णव सेवा के फल से ही कुलिया के देवानन्द पण्डित जी श्रीमहाप्रभु के चरणों में विश्वास करने लगे थे। श्रीवक्रेश्वर पण्डित देवानन्द पण्डित के घर में रहकर उनके मंगल का कारण बने थे। 

श्रीदेवानन्द पण्डित स्मार्त धर्म में प्रविष्ट होने पर भी महाज्ञानी और संयत थे। श्रीभागवत के बिना और कोई ग्रन्थ उनके द्वारा पाठ्य न था। वे ईश्वर निष्ठ थे तथा इन्द्रिय आदि के वश में नहीं थे। लेकिन श्रीगौर-सुन्दर के प्रति विश्वास का उनमें अभाव था। श्रीवक्रेश्वर पण्डित की कृपा से ही उनकी वह दुर्बुद्धि दूर हो गयी थी और वे भगवान में श्रद्धालु हो गये थे।

श्रीमन्महाप्रभु जी ने देवानन्द पण्डित जी को भागवत की भक्ति परक व्याख्या करने के लिए कहा। देवानन्द पण्डित का यह विशेष सौभाग्य है कि उन्होंने श्रीमहाप्रभु जी की दण्ड रूपी कृपा का लाभ प्राप्त किया था। किसी सौभाग्यशाली जीव को ही श्रीचैतन्य महाप्रभु जी से सजा प्राप्त होती है। कहते हैं कि श्रीमहाप्रभु जी जिसे दण्ड देते हैं, वह सीधा वैकुण्ठ लोक को प्राप्त करता है।

श्रीदेवानन्द पण्डित जी की जय !!!!! 
आपकी तिरोभाव तिथि कि जय !!!!

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