श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर प्रभुपाद जी की जय! आपकी तिरोभाव तिथि पूजा महामहोत्सव की जय ! आपके आविर्भाव के छः महीने बाद, श्रीधाम पुरी में श्री जगन्नाथ जी की रथ यात्रा का महोत्सव आया। उस वर्ष , वह रथ , श्री जगन्नाथ देव जी की इच्छा से , श्रीभक्ति विनोद ठाकुर के घर के द्वार तक आकर रुक गया और किसी भी प्रकार आगे नहीं बढ़ा। उनके घर के सामने, तीन दिन तक , श्रीजगन्नाथ देव रथ में विराजे रहे । श्रील भक्ति विनोद ठाकुर के नेतृत्व में,
श्री जगन्नाथ देव के सामने , तीन दिन तक निरन्तर श्रीहरिकीर्तन महोत्सव होता रहा। इसी बीच, एक दिन माँ की गोद में छः महीने के शिशु ने श्रीजगन्नाथ देव के सामने आकर हाथ फैलाकर, श्रीजगन्नाथ जी के चरणों का आलिंगन किया, कि तभी श्रीजगन्नाथ जी के गले की एक प्रसादी माला गिर पड़ी जिसे इस दिव्य शिशु ने ग्रहण किया। आप अपने दिव्य वचनों में कहा करते थे --
सैकड़ों विपत्तियोँ, सैकड़ों तिरस्कार और सैकड़ों लाञ्च्छ्नों में भी हरिभजन नहीं छोड़ें । संसार में रहते समय, नाना प्रकार की असुविधाएँ हैं ; किन्तु उन असुविधाओं से घबराना नहीं है। ये सारी असुविधाएँ दूर होने के बाद हम कौन-सी वस्तु को प्राप्त करेंगे, हमारा नित्य जीवन क्या होगा, ये सब बातें, यहाँ रहने तक हमको जान लेने की आवश्यकता है। अपनी अप्रकट लीला के दिन, प्रातः श्रील प्रभुपाद जी ने त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद् भक्ति रक्षक श्रीधर गोस्वामी महाराज जी को श्रील नरोत्तम ठाकुर महाशय के 'श्रीरूप मञ्जरी पद, सेइ मोर स्म्पद '; और श्रीपाद नवीनकृष्ण विद्यालंकार प्रभु को, शिक्षाष्टक के 'तुहुँ दयासागर तारयिते प्राणी ' -- भजनों को कीर्तन करने के लिए कहा था।
श्री जगन्नाथ देव के सामने , तीन दिन तक निरन्तर श्रीहरिकीर्तन महोत्सव होता रहा। इसी बीच, एक दिन माँ की गोद में छः महीने के शिशु ने श्रीजगन्नाथ देव के सामने आकर हाथ फैलाकर, श्रीजगन्नाथ जी के चरणों का आलिंगन किया, कि तभी श्रीजगन्नाथ जी के गले की एक प्रसादी माला गिर पड़ी जिसे इस दिव्य शिशु ने ग्रहण किया। आप अपने दिव्य वचनों में कहा करते थे --
सैकड़ों विपत्तियोँ, सैकड़ों तिरस्कार और सैकड़ों लाञ्च्छ्नों में भी हरिभजन नहीं छोड़ें । संसार में रहते समय, नाना प्रकार की असुविधाएँ हैं ; किन्तु उन असुविधाओं से घबराना नहीं है। ये सारी असुविधाएँ दूर होने के बाद हम कौन-सी वस्तु को प्राप्त करेंगे, हमारा नित्य जीवन क्या होगा, ये सब बातें, यहाँ रहने तक हमको जान लेने की आवश्यकता है। अपनी अप्रकट लीला के दिन, प्रातः श्रील प्रभुपाद जी ने त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद् भक्ति रक्षक श्रीधर गोस्वामी महाराज जी को श्रील नरोत्तम ठाकुर महाशय के 'श्रीरूप मञ्जरी पद, सेइ मोर स्म्पद '; और श्रीपाद नवीनकृष्ण विद्यालंकार प्रभु को, शिक्षाष्टक के 'तुहुँ दयासागर तारयिते प्राणी ' -- भजनों को कीर्तन करने के लिए कहा था।




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