बोलिये श्रीगिरिराज महाराज जी की जय ! श्रीगोवर्धन पूजा के समय श्रीकृष्ण, एक ओर गिरिराज के रूप से व्रजवासियों का अर्पित किया हुआ भोजन ग्रहण कर रहे थे और दूसरी ओर गोपाल रूप में सभी व्रजवासियों को बोल रहे थे कि ये देखो गिरिराज जी साक्षात् रूप से आप का दिया भोजन खा रहे हैं। जबकि इन्द्र ने ऐसा कभी नहीं किया । इस लीला से श्रीकृष्ण ने बताया कि मैं ही गिरिराज हूँ। दुसरी ओर श्रीमती राधा जी ने गिरिराज को 'हरि दास वर्य' अर्थात् भगवान के भक्तों में श्रेष्ठ कह कर सम्बोधित किया था। विष्णुपाद 108 श्रीश्रीमद्भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर प्रभुपाद जी के शिष्य परमपूज्यपाद त्रिदण्डी स्वामी श्रीश्रीमद्भक्ति प्रमोद पुरी गोस्वामी महाराज जी कहा करते थे कि गिरिराज तत्त्व और चैतन्य महाप्रभु तत्त्व एक ही हैं। दोनों भक्त भी हैं और भगवान भी।


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