मंगलवार, 8 अक्टूबर 2013

श्रील भक्ति प्रमोद पुरी गोस्वामी महाराज जी - आविर्भाव तिथि पर विशेष

पूर्वाश्रम में श्रील भक्ति विनोद ठाकुर जी के ग्रन्थों को पढ़ते हुए एक बार आपको मौका मिला उनके उस ग्रन्थ को पढ़ने का जिसमें उन्होंने कलियुगपावनावतारी भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी की प्रकट-स्थली के आविष्कार के बारे में लिखा था तथा साथ ही उस धाम की ऐसी महिमा लिखी थी कि मायापुर जैसा स्थान भारत तो क्या, पूरे त्रिभुवन में नहीं है।                                                                                                                                                             ग्रन्थ में महाप्रभु जी के स्थान की विभिन्न प्रकार की महिमा पढ़कर आपने अपने मित्रों के साथ वहाँ जाने का कार्यक्रम बनाया। एक दिन अपने मित्रों के साथ जब आप दोपहर के समय मायापुर पहुँचे तो सबसे पहले आपने भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के जन्म-स्थान के दर्शन किये। इस दिव्य स्थान को दर्शन करके आपके हृदय में अपूर्व आनन्द का अनुभव हुआ। अपने - आप ही उस स्थान पर आपके शरीर में रोमान्च हो उठा तथा आपकी आँखों से आँसुओं की धारा बह चली। उस समय आपने अपने मित्रों को कहा - 'यहाँ आ कर मुझे ऐसा अनुभव होता है कि ये स्थान परम पवित्र है तथा मेरे जीवन का सर्वश्रेष्ठ तीर्थ है। यहाँ आ कर हम सब धन्य हो गये हैं तथा हम सभी का सौभाग्य है कि हम आज इस सर्वश्रेष्ठ तीर्थ का दर्शन व स्पर्श कर रहे हैं।'                                                                                                                                                                                               
आपने व आपके सभी मित्रों ने सपार्षद श्रीगौरहरि के उद्देश्य से वहाँ दण्डवत् - प्रणाम किया।

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