शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2013

मेरी विनम्र प्रार्थना

श्री ब्रह्म मध्व गौडीय सारस्वत सम्प्रदाय की जय ।                                                               मेरे प्रिय गुरुदेव श्रील श्री भक्ति प्रमोद पूरी गोस्वामी महाराज की जय ।                                                                                                   
                                                                                              श्री गौड़ीय मठ के संस्थापक व मेरे परमगुरुदेव, श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती गोस्वामी ठाकुर जी की जय 
                                                                                                                                             प्रिय भक्तों ,
                                                                                              सर्वप्रथम मेरी ओर से आप सब का यथा योग्य अभिवादन और हार्दिक स्नेह।                                                                                                                            
आज गौर चतुर्दशी है, इसी दिन मेरा जन्म कानपुर  गाँव ,जिला पश्चिम बंगाल में हुआ था। मेरा अति सौभाग्य है कि गुरु, वैष्णवों की कृपा से

मुझे गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय के सम्पर्क में आने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मेरी स्नातक की डिग्री के पश्चात् मेरे दादा श्री मदन मोहन प्रभु( जो श्रील भक्ति सिद्धांत गोस्वामी महाराज के शिष्य थे) ने  मुझे इस दुःखमय संसार मे फंसने की जगह , गौड़ीय सम्प्रदाय से जुड़ने के लिए  उत्साहित किया। आज  के समय में भारतीय परिवारो में ऐसा शुभ  चिन्तक मिलना मुश्किल  है जो कि अपने बच्चों को पारिवारिक मोह को त्याग कर श्री हरि की सेवा करने के लिए प्रेरित करे । उनकी इसी भावना के कारण मैं उनके चरणों में साष्टांग दंडवत प्रणाम करता हूँ और सभी भक्तो को भी जो मुझे भौतिक संकटों से सुरक्षा प्रदान कर रहे है और मुझे पवित्रता के साथ भक्ति मार्ग का अनुसरण करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, को भी मैं यथा योग्य सम्मान प्रदान करता हूँ ।                                   
                                                                                         इस वर्तमान युग में भक्तिमय जीवन व्यतीत करना बहुत कठिन है क्योंकि जो व्यक्ति संकल्पमय पवित्र जीवन व्यतीत कर रहे हैं , उनके संकल्प को भंग करने के लिए कलि महाराज  बहुत सारी बाधाएँ ,और झूठा मोह जाल फैलाता है। अब तो पवित्र धामों मे भी अवैध होटल, वेश्यालय हैं । यहाँ तक कि राक्षसी  सरकारी नीतियाँ भी  हमारे
आध्यात्मिक  धरोहर को सुरक्षा नहीं प्रदान कर रही हैं। वर्तमान समय में जो  भक्त अपना त्यागमय जीवन बड़ी पवित्रता के साथ बिता रहे है , निश्चित रूप से यह गुरु वर्ग की कृपा से ही संभव है। इसलिए मैं  सारे वैष्णवों तथा गुरु वर्ग से विनम्रतापूर्वक प्रार्थना करता हूँ कि वे मुझ पर ऐसी कृपा करें कि मैं अपना जीवन पवित्रता तथा निष्ठापूर्वक व्यतीत कर सकूँ , और बिना किसी अपराध के हरिनाम कर सकूँ। 

कान्हा नाम भजे जीव आर सब मिछे। 
पला इते पथ नाहि यम आछे पीछे।।

अरे, जीवो ! सारे व्यर्थ के कार्यो को छोड़ कर तुम कृष्ण भजन करो ,इस वर्तमान समय की समस्याओं और यमराज के भय से एकमात्र वही  तुम्हे बचा सकता है। 

कलि काले नाम बिना नहीं आर धर्म। 

इस कलियुग  मे हमें कष्टों से बचाने के लिए कृष्ण नाम कीर्तन के अतिरिक्त  और कोई धर्म नहीं है।

कृष्ण नाम का अर्थ हरे कृष्ण महामंत्र है -हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ,हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। 
यह महामंत्र  क्रमश न केवल हमें  दिव्य रसास्वादन करवाएगा अपितु हमें दिव्य युगल श्री श्री राधा कृष्ण की सेवा का सौभाग्य भी प्रदान करेगा। 

जो वर्तमान समय मे त्यागमय जीवन बहुत पवित्रता के साथ बिता रहे है , निश्चित रूप से यह गुरु वर्ग की कृपा से ही संभव है। इसलिए मैं  सारे वैष्णवों तथा गुरु वर्ग से विन्रमता पूर्वक प्रार्थना करता हूँ कि मैं अपना जीवन पवित्रता तथा निष्ठापूर्वक व्यतीत कर सकूँ ,और बिना किसी अपराध के अपना हरिनाम कर सकूँ। 

कृष्ण-नाम भज जीव आर सब मिछे। 
पलाइते पथ नाहि यम आछे पीछे।।

अरे, जीवो ! सारे व्यर्थ के कार्यो को छोड़ कर तुम श्रीकृष्ण भजन करो ।
इस वर्तमान समय की समस्याओं और यमराज के भय से एकमात्र वही तुम्हें बचा सकता है। 
                                                                                                  कलि काले नाम बिना नाहि आर धर्म। 
                                                                                                इस कलियुग  मे हमें कष्टों से बचाने के लिए श्रीकृष्ण नाम कीर्तन के अतिरिक्त  और कोई धर्म नहीं है।
                                                                                              श्रीकृष्ण नाम करने का अर्थ हरे कृष्ण महामंत्र करना है -                                                                                                                   हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ,हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। 
यह महामंत्र न केवल हमें  दिव्य रसास्वादन करवाएगा अपितु हमें दिव्य युगल श्री श्री राधा कृष्ण की सेवा का सौभाग्य भी प्रदान करेगा, जो मनुष्य जीवन का सर्वॊच्च लक्ष्य है। 
                                                                                              इसलिए मेरी आप से विनम्र प्रार्थना है कि तमाम व्यस्तताओं  के बावजूद भी अपनी पूरी क्षमता के अनुसार महामंत्र का कीर्तन करो। बिना किसी सांसारिक कामना के कीर्तन करने से गुरु वर्ग की कृपा मिलेगी। पिछले जन्म में अथवा इस जन्म के बीते समय में अगर तुम ने  घोर पाप भी किए हों तो गुरु वर्ग की कृपा और पवित्र हरिनाम के प्रभाव से उन सब पापों का क्षय हो जायेगा। 
                                                                                             
बहुत समय पहले रत्नाकर नाम का एक व्यक्ति था। वह अपने परिवार के पालन पोषण के लिए हत्या ,चोरी ,धोखा इत्यादि बहुत जघन्य पाप करता था। एक बार नारद ऋषि वहां से निकले और उन्होंने उस पर अपनी कृपा की। सबसे पहले नारद ऋषि ने उसे समझाया कि उसे अपने किए हुए पापों का परिणाम भुगतना पड़ेगा।                                                         रत्नाकर ने अपनी सफाई देते हुए कहा कि ये पाप तो वह अपने परिवार के पालन पोषण के लिए कर रहा है ।                                                                                                                                                 तब नारद ऋषि ने उसे कहा घर जाओ और अपने परिवार से पूछो कि क्या वे तुम्हारे पापों के परिणाम को तुम्हारे साथ अपने ऊपर लेंगे ?                                                                                                         जब उसने अपने परिवार से यही प्रश्न पूछा तो उत्तर में उन्होंने कहा कि तुम्हें अपने पापों का परिणाम तो स्वयं ही भोगना होगा।                                                                                                                     रत्नाकर बड़े दुःखी हृदय से नारद ऋषि के पास आया। नारद ऋषि ने पापों के फल से बचने के लिए उसे भगवान् राम के पवित्र नाम का कीर्तन करने के लिए कहा ,परन्तु रत्नाकर के पाप इतने अधिक थे कि वो भगवान के पवित्र नाम करने में अक्षम रहा।                                                                                                                                                   तब नारद ऋषि ने उसे मरा मरा का जाप करने के लिए कहा। इस तरह धीरे -धीरे वह राम नाम करने मे सक्षम हो गया। अपने गुरु के शब्दों मे दृढ़ विश्वास के कारण उसकी भगवान् राम के नाम में बहुत निष्ठा हो गई। 
                                                                                              लम्बे समय तक भगवान् के नाम का कीर्तन करने से रत्नाकर बहुत बड़े ऋषि बन गए और वाल्मीकि ऋषि के नाम से   प्रसिद्ध हुए। नाम के प्रभाव के कारण ही भगवान् उनके हृदय में प्रकट हुए और उन्होंने भगवान् राम के प्रकट से पूर्व ही रामायण की रचना कर दी जिसमें उन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् की लीलायों का वर्णन किया ।

ऐसी ही एक और घटना श्री चैतन्य महाप्रभु जी की लीला में भी है। घटना
कुछ इस प्रकार है कि  काजी को (जो कि उस समय स्थानीय गवर्नर था ) श्री वास पंडित के घर में जोर जोर से कीर्तन करने की बहुत सारी शिकायते मिली। चाँद काजी जो जन्म से ही मुस्लिम था ,हरिनाम के बढ़ते प्रभाव को सहन नहीं कर पा रहा था ,शिकायतों का लाभ उठाते हुए उसने अपने सिपाहियों को मृदंग तोड़ने के लिए भेज दिया और भक्तों को सख्ती से कीर्तन करने के लिए मना कर दिया। जब महाप्रभुजी ने यह खबर सुनी तो वह दस हजार व्यक्तियों के साथ हरिनाम संकीर्तन करते हुए रात को विद्रोह प्रदर्शन के लिए निकल पड़े। इतनी भारी  भीड़ को देखकर चाँद काजी भयभीत और हैरान  हो गया । उसने महाप्रभु जी को अपने घर के अन्दर बात करने के लिए बुलाया । उस समय महाप्रभु जी ने चाँद काजी को बड़े प्यार से 'मामा' कह कर संबोधित किया ।                                                                                                           चाँद  काजी उस समय पूरी
तरह से भयभीत था, उसने महाप्रभु जी को बताया रात को स्वप्न में आधा सिंह और आधा नर अर्थात नरसिंह भगवान् आए थे और उन्होंने मेरी छाती पर नाखुन गाड़ दिये और कहा कि तुम अभी तक कीर्तन मे ज्यादा विघ्न नहीं डाला इसलिए तुम्हे अभी छोड़ रहा हूँ ,परन्तु अब अगर तुमने हरिनाम संकीर्तन आन्दोलन में जरा सा भी हस्तक्षेप करने की कोशिश की तो मैं तुम्हें तुम्हारे पूरे परिवार के साथ नष्ट कर दूंगा। यह कहते हुये चाँद काजी कांप रहा था। परन्तु महाप्रभु जी ने अहैतुकी कृपावश उसको गले लगाकर शांत और निर्भय किया और उस से कहा तुम पिछले जन्म में  कंस थे , उसी राक्षस प्रवृति के कारण तुम्हारा जन्म अब अवैष्णव परिवार मे हुआ, परन्तु इस युग मे मैंने प्रेम वितरण के लिए अवतार लिया है । अतः तुमसे हरिनाम करवा कर व तुम्हें दिव्य प्रेम का रसास्वादन करवा कर - मैं तुम्हारा कल्याण करूँगा।                                                                                                
इससे ज्यादा स्मरणीय घटना नित्यानंद प्रभु द्वारा जगाई - मधाई उद्धार लीला है । इस लील में महाप्रभु जी ने नित्यानंद जी और हरिदास ठाकुर को गोलोक का प्रेमधन हरि नाम के वितरण के लिए भेजा।  नवद्वीप धाम में जगाई-मधाई नाम के दो व्यक्ति रहते थे थे, जो अपने राक्षसी व्यवहार
से सब को आतंकित करते थे । वह हर समय पाप करते रहते थे और हमेशा नशे मे चूर रहते थे। नित्यानंद प्रभु जी ने जब उन्हें देखा तो सोचा कि इनका उद्धार करने से अवश्य ही महाप्रभु जी और हरिनाम की महिमा बढ़ेगी। अतः नित्यानंद प्रभु जी ने उन्हें वैष्णव बनाने के लिए बड़ी विनम्रतापूर्वक कृष्ण नाम उच्चारण करने के लिए कहा ,पर दोनों इतने मे ही बहुत उग्र हो गए और वे नित्यानंद जी और हरिदास ठाकुर जी को मारने के लिए दोड़े । उस समय की लीला में, नित्यानंद  जी और श्रीहरिदास ठाकुर जी को अपने जीवन की रक्षा के लिए भागना पड़ा।                                                                                                     अगले दिन नित्यानंद प्रभु फिर से उन दोनों भाईयों के पास गए और उन्होंने उन्हें कृष्ण नाम उच्चारण के लिए कहा । इस पर उग्र हुए मधाई ने टूटे हुए मिट्टी के बर्तन के एक टुकड़े को नित्यानंद प्रभु जी के सिर  पर मार डाला , जिससे नित्यानंद प्रभु जी के सिर से खून बहने लगा , परन्तु इस पर भी नित्यानंद प्रभु शांत रहे।  
                                                                                              इधर जब किसी भक्त के द्वारा यह खबर महाप्रभु जी तक पहुँची तो वे अत्यंत क्रोधित हो गए और जगाई -मधाई  को दंड देने के लिए वहां पहुंच गए। परन्तु नित्यानंद प्रभु जी ने महाप्रभु जी से उन पतितो पर कृपा करने की प्रार्थना की और उनसे कहा कि इस युग मे आपका अवतार दंड देकर सुधार करने के लिए नहीं अपितु सभी जीवो को प्रेम वितरण के  लिए हुआ है । आप इन पतित भाइयों पर कृपा कीजिए, आप पतित पावन हो ,परम करुणामय हो । इन्हें आप की कृपा की बहुत जरूरत है। आप इन पर ऐसी कृपा करें कि ये और पाप न करके हरि नाम करें।                                                                                                       इस घटना के बाद जगाई-मधाई परम वैष्णव हो गए और महाप्रभु जी , जो कि श्रीराधा कृष्ण जी का सम्मिलित अवतार है, के परम भक्त हो गए। 
इस समय मैं राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार कर रहा हूँ और
देखता हूँ कि इस कलियुग के प्रभाव से ग्रसित कई पतित जीव महामंत्र के कीर्तन से संसार के कष्टों से मुक्त हो रहे  हैं। इन सब  पर  हमारे गुरु वर्ग श्रील भक्ति प्रमोद पुरी  गोस्वामी महाराज ,श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज ,श्रील भक्ति रक्षक श्रीधर गोस्वामी महाराज ,श्रील भक्ति प्रज्ञान केशव गोस्वामी महाराज और श्रील भक्ति वेदान्त स्वामी महाराज जी की कृपा है।                                                                                      
श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर प्रभुपाद जी के शिष्य और प्रशिष्य पूरे विश्व में बड़े उत्साह के साथ हरिनाम संकीर्तन का प्रचार - प्रसार कर रहे हैं।  आज के शुभ दिन में मैं अपने गुरुदेव तथा सभी वैष्णवों से कृपा प्रार्थना करता हूँ कि वे मुझ पर ऐसी कृपा करें जैसे मैं बिना किसी अपराध और सांसारिक लाभ के , जो यह श्री चैतन्य महाप्रभु के मिशन का दिव्य प्रेम और हरिनाम वितरण के क्रम को जारी रख सकूं।                                                                                                                                                                            मैं आशा करता हूँ कि आप सब मेरे आध्यात्मिक बल के लिए प्रार्थना करेंगे, जिससे मैं महाप्रभु जी के इस मिशन को पवित्रता के साथ जारी रख  सकूँगा।                                                                                                                                                              
द्वारा: श्रील भक्ति बिबुद्ध बोधायन महाराज  जी।

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