श्रील भक्ति प्रमोद पुरी गोस्वामी महाराज जी के बचपन में, एक दिन जब आप स्कूल से घर आये तो आपने देखा कि माताजी तालाब से मछलियाँ निकालकर लायीं और उनकी सब्जी बनाने के लिये चाकू से काट रहीं हैं। कुछ मछ्लियाँ बिना पानी के बर्तन में तड़प रही हैं तो कुछ कट रही हैं, जिनसे खून निकल रहा है। यह दृश्य देखकर आप सहम गये। बच्चे को सहमा देख आपकी माताजी ने आपको पूछा - बेटा, क्या हुआ? क्या किसी ने स्कूल में तुझे कुछ कहा? बालक ने 'ना' के इशारे में सिर हिलाया। पुचकारते हुये फिर माताजी ने पूछा - फिर क्या हुआ, तू डरा हुआ सा क्यों है? तू कुछ बोलता क्यों नहीं? बालक की आँखों से आसुँ छलक आये और उसने कहा - माँ ! खून से लथपथ इन मछ्लियों को धोकर व इनकी
सब्जी बनाकर आप इन्हें खाओगे? छोटे बच्चे के मुख से इस प्रकार की बात सुनकर माताजी सन्न सी रह गयीं। उनके मुख से कुछ भी जवाब न निकला। बालक ने कहा -- माँ ! चुँकि वे बेचारी मछलियाँ असहाय हैं, इसलिये आप इन्हें काट रही हैं। हम सब अपना परिचय मनुष्य के रूप में देते हैं, परन्तु असहाय प्राणी को काट कर खाना, ये कहाँ की मनुष्यता है?
दूसरे प्राणियों को मारकर खाना भगवान के विचार से पाप है व अन्याय है। जो अन्याय करता है व जो अन्याय को देखकर चुप रहता है, दोनों ही अपराधी हैं। अतः यदि आप आज के बाद मछली बनाओगी तो मैं कभी भी इस रसोईघर में प्रवेश नहीं करूँगा। बच्चे की बात सुनकर माताजी को अहसास हुआ कि सचमुच वे गलत हैं और उसी दिन के बाद घर में कभी मछली की रसोई नहीं हुई।
सब्जी बनाकर आप इन्हें खाओगे? छोटे बच्चे के मुख से इस प्रकार की बात सुनकर माताजी सन्न सी रह गयीं। उनके मुख से कुछ भी जवाब न निकला। बालक ने कहा -- माँ ! चुँकि वे बेचारी मछलियाँ असहाय हैं, इसलिये आप इन्हें काट रही हैं। हम सब अपना परिचय मनुष्य के रूप में देते हैं, परन्तु असहाय प्राणी को काट कर खाना, ये कहाँ की मनुष्यता है?
दूसरे प्राणियों को मारकर खाना भगवान के विचार से पाप है व अन्याय है। जो अन्याय करता है व जो अन्याय को देखकर चुप रहता है, दोनों ही अपराधी हैं। अतः यदि आप आज के बाद मछली बनाओगी तो मैं कभी भी इस रसोईघर में प्रवेश नहीं करूँगा। बच्चे की बात सुनकर माताजी को अहसास हुआ कि सचमुच वे गलत हैं और उसी दिन के बाद घर में कभी मछली की रसोई नहीं हुई।
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