हमारे सनातन - धर्म में कार्तिक - व्रत की विशेष महिमा बताई गयी है। जोमनुष्य कभी भी यज्ञअनुष्ठान नहीं करता है, कार्तिक व्रत करने से वह व्यक्ति भी यज्ञफल अर्थात विष्णु- भक्ति को प्राप्तकर जाता है। इस मास में श्रीहरि मंदिर में कर्पूर व अगरु सहित दीप जलाने से जगत में फिर दुबाराजन्म ग्रहण नहीं करना पड़ता। सूर्य- ग्रहण के समय कुरुक्षेत्र में एवं चन्द्र-ग्रहण के समय नर्मदा नदी में दान आदि करने से जो पुण्य फल होता है, कार्तिक मास में दीप दान करने से इसकी अपेक्षा करोड़ो गुणा ज्यादा फल प्राप्त होता है। जो मनुष्य कार्तिक-मास में ऊँचे स्थान पर 'आकाश-दीप-दान' करता है उसके समस्त कुल का उद्धार हो जाता है एवं उसे विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।
कार्तिकमास में भगवान् कृष्ण के मंदिर की परिक्रमा एवं वैष्णवों (भगवान्विष्णु के भक्तों) की सेवा करने से राजसूय एवं अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। जो भगवान् कृष्ण के सामने भक्तिपूर्वक नृत्य एवं संकीर्तन करता है उसे अक्षय (जिसका कभी विनाश नहीं होता) पद लाभ होता है। इस कार्तिक मास में, श्रीविष्णुसहस्र नाम स्तॊत्र एवं 'गजेन्द्र मोक्ष' का पाठ करने पर दुबारा जन्मग्रहण नहीं करना पड़ता। इस मास में अति यत्नपूर्वक प्रतिदिन श्रीमदभागवत के श्लोकों का श्रद्धापूर्वक पाठ करने पर १८ पुराणों के पाठ का फल लाभ होता है। जो व्यक्ति कार्तिक मास में भूमिपर शयन, ब्रह्मचार्य पालन, रात्रि-जागरण, प्रात: स्नान, तुलसी-सेवन, उज्जापन, दीप-दान, हरी कथा श्रवण व कीर्तन और निम्नलिखित महामंत्र का नियमित रूप से जप करता है, उसे और दिनों अपेक्षा करोड़ों गुणा ज्यादा फल प्राप्त होता है और वह दुर्लभ श्रीकृष्ण-भक्ति लाभ करता है। कलियुग का महामंत्र-
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ भगवान् ने अपने दामबंधन लीला के माध्यम से बताया कि उन्हें कोई अपनी चेष्टा अथवा कोशिश से नहीं बाँध सकता। एकमात्र भक्ति के द्वारा ही उन्हें प्राप्त किया जा सकता है और वह भक्ति प्राप्त होती है शुद्ध एवं निष्काम भक्तों का संग करने से। जो इस व्रत का नियम से पालन करते हैं उन्हें अन्य कोई यज्ञ, तपस्या एवं अन्यान्य तीर्थों की सेवा करने की आवश्यकता नहीं है।
इसलिए श्रीकृष्ण-भक्ति पिपासु सज्जनों से हमारा निवेदन है कि वे साधु-संतों के आनुगत्य में साधु संग, नाम संकीर्तन, श्रीमदभागवत श्रवण, श्रीधाम वास (श्रीमठ मंदिर) एवं श्रद्धा से श्रीमूर्ति सेवन रुपी पांच मुख्य भक्ति-अंगो का अनुशीलन करते हुए इस सुवर्ण अवसर का लाभ उठाये एवं अपने जीवन को धन्य करे।




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