ब्रह्मयामल नामक ग्रन्थ में श्रीशिवजी महामन्त्र के वास्तविक स्वरूप के बारे में बताते हैं,
'हे महादेवी ! कलियुग में श्रीहरिनाम के बिना कोई भी साधन सरलता से पाप निस्तारक नहीं है। अतः सर्व-साधारण का उद्धार करने के लिये श्रीहरिनाम को प्रकाशित कर देना चाहिए। कलियुग में 'महामन्त्र' का संकीर्त्तन करने से व्यक्ति मात्र सभी जगह विमुक्त हो सकते हैं । महामन्त्र में पहले 'हरे कृष्ण' 'हरे कृष्ण' ये दो पद बोलने चाहिए। उसके बाद 'कृष्ण कृष्ण' ये दो पद बोलने चाहिए। तत्पश्चात् 'हरे हरे' ये दो पद बोलने चाहिए। उसके बाद 'हरे राम' 'हरे राम' ये दो पद बोलकर तथा 'राम राम' ये दो पद बोलकर 'हरे हरे' इन दो पदों को बोलकर सर्वपाप विनाशक श्रीकृष्ण के 'महामन्त्र का समुद्धरण करना चाहिए।''
'हरिं विना नास्ति किञ्चित् पाप निस्तारक कलो।
तस्माल्लोकोद्धारणार्थं हरिनाम प्रकाशयेत्………………।
'हे महादेवी ! कलियुग में श्रीहरिनाम के बिना कोई भी साधन सरलता से पाप निस्तारक नहीं है। अतः सर्व-साधारण का उद्धार करने के लिये श्रीहरिनाम को प्रकाशित कर देना चाहिए। कलियुग में 'महामन्त्र' का संकीर्त्तन करने से व्यक्ति मात्र सभी जगह विमुक्त हो सकते हैं । महामन्त्र में पहले 'हरे कृष्ण' 'हरे कृष्ण' ये दो पद बोलने चाहिए। उसके बाद 'कृष्ण कृष्ण' ये दो पद बोलने चाहिए। तत्पश्चात् 'हरे हरे' ये दो पद बोलने चाहिए। उसके बाद 'हरे राम' 'हरे राम' ये दो पद बोलकर तथा 'राम राम' ये दो पद बोलकर 'हरे हरे' इन दो पदों को बोलकर सर्वपाप विनाशक श्रीकृष्ण के 'महामन्त्र का समुद्धरण करना चाहिए।''
'हरिं विना नास्ति किञ्चित् पाप निस्तारक कलो।
तस्माल्लोकोद्धारणार्थं हरिनाम प्रकाशयेत्………………।
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