सोमवार, 30 सितंबर 2013

आशीर्वचन

भगवान की सेवा करना व भक्तों की सेवा करना ही हमारा धन है। सेवा करने से सेव्य में प्रीति होती है। हमारे गुरु जी कहा करते थे कि भक्त और भगवान दो सेव्य हैं मेरे। शुद्ध - भक्त के सामने आने पर भी आप पहचान नहीं पायेंगे कि वे शुद्ध - भक्त हैं, यदि सुकृति नहीं है तो। - श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी ।

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