आप श्रीकृष्ण लीला में विलास मन्जरी हैं। आपके पिता
का नाम बल्लभ था, किन्तु भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने उनको अनुपम नाम दिया था।
आपके पिताजी श्रील रूप - सनातन गोस्वामी के छोटे भाई
थे।
एक बार आपने स्वप्न में संकीर्तन के मध्य नृत्य
अवस्था में श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के दर्शन किये थे। ऐसे दर्शन से आप प्रेम से
व्याकुल हो गये, व एक व्यक्ति को साथ लेकर आप श्रीचैतन्य महाप्रभु के दर्शनों के
लिये चल पड़े। कुछ ही दिनों के उपरान्त आप श्री-वास-आंग़न में आ पहुँचे। वहाँ आपने
श्रीनित्यानन्द प्रभु के दर्शन किये व उनकी कृपा प्राप्त की। श्रीनित्यानन्द प्रभु
ने आपको तत्काल ब्रज में जाने का आदेश दिया।
आपका बाल्य काल से ही भगवद् अनुराग देखा जाता है । आप
बचपन में अपने दोस्तों के साथ श्रीकृष्ण पूजा सम्बन्धित खेल छोड़ कर और कोई खेल नहीं
खेलते थे। स्वयं कृष्ण-बलराम जी की मूर्ति बना कर उनकी चन्दन, पुष्प, इत्यादि से
पूजा करते, उन्हें रत्न-जड़ित सुन्दर-सुन्दर वस्त्र, अलंकार पहनाते तथा अत्यन्त
उल्लासपूर्ण हृदय से बिना पलक झपकाये दर्शन करते तथा सब साष्टांग प्रणाम करते तो इस
प्रकार लगता मानो सोने की मूर्ति धूलि में पड़ी हो । इसके अलावा बहुत प्रकार की
मिठाईयाँ कृष्ण-बलराम को भोग लगाते तथा सभी बालकों के साथ प्रेमानन्द में प्रसाद
पाते।
श्रील रूप गोस्वामी तथा श्रील सनातन गोस्वामी जी के
अप्रकट के बाद श्रीलजीव गोस्वामीइ जी को सोत्कल गौड़ मथुरा मण्डल के गौड़ीय वैष्णव
सम्प्रदाय के सर्वश्रेष्ठ आचार्य पद पर अधिष्ठित (नियुक्त) किया गया था। श्रील
कृष्ण दास कविराज गोस्वामी जी ने आपके प्रकटकाल में ही श्री
श्रीराधा दामोदर जी के विग्रह, जिनकी आप सेवा किया
करते थे, आज भी वृन्दावन में श्री राधा-दामोदर मन्दिर में विराजमान हैं। मन्दिर के
पीछे श्रील जीव गोस्वामी जी का समाधि-स्थान है। इसके अलावा श्रीराधा-कुण्ड के
किनारे तथा श्रीललिता-कुण्ड के पास आपकी भजन कुटी आज भी विद्यमान है ।
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