द्वारा: श्रील बी.बी. तीर्थ महाराज
जिस क्षण हम निष्कपट भाव से श्री कृष्ण के चरणों में पूर्ण शरणागत हो जाएँगे उसी समय हमारे सभी कष्ट व् दुःख समाप्त हो जाएँगे | एक शरणागत भक्त की कृष्ण को छोड़ कर कोई अन्य इच्छा नहीं होती और वे हमेशा आनंद में रहता है और हर परिस्थिति को गुरु-कृपा के रूप में अनुभव करता है |
शरणागति के ६ लक्षण होते हैं :
१) अनुकूलस्य संकल्प: - केवलमात्र उन्हीं वस्तुओं को स्वीकार करना जो शुद्ध भक्ति के अनुकूल हैं |
२) प्रतिकूलस्य वर्जनं: - शुद्ध भक्ति के प्रतिकूल सभी वस्तुओं को अस्वीकृत करना |
३) रक्षिष्यति विश्वास - हमेशा यह दृढ विश्वास रखना कि कृष्ण सभी परिस्थितिओं में मेरी रक्षा करेंगे |
४) गोपतृत्व वरणं - श्री कृष्ण ही मेरे पालनकर्ता हैं |
५) आत्म-निक्षेप - मैं भगवान श्री कृष्ण का हूँ और उनकी शक्ति का अंश हूँ |
६) कर्पण्य - सब प्रकार के भौतिक अभिमानों को छोड़ कर यह विश्वास करना की मैं भगवान श्री कृष्ण की तटस्था शक्ति का अंश हूँ और इस प्रकार अपने आप को तृण से भी दीन समझना |
भगवान श्री कृष्ण का पूर्ण शरणागत भक्त इस अनित्य संसार में किसी भी परिस्थिति में व्याकुल नहीं होता | भगवान श्री कृष्ण निरंतर अपने शरणागत भक्त की रक्षा करते हैं और उसका पालन करते हैं | हमें अपने कर्मानुसार अनुकूल व् प्रतिकूल परिस्थितियां प्राप्त होती हैं और इसके लिए हमें किसी को भी दोषारोपण नहीं करना चाहिए |
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