बुधवार, 1 फ़रवरी 2023

संसार से मुक्त होने का समझो समय आ गया जब मन में_____________

 एक बार चण्डीगढ़ मठ में एक डाक्टर आये। प्रसाद आदि खाने के बाद वो एक बेन्च पर बैठ गये।

मठ का एक सेवक भी उनके पास ही बैठ गये और बातचीत करने लगे।

सेवक ने पूछा - आप किस चीज़ के डाक्टर हैं?

डाक्टर ने कहा - मैं तो जानवरों का डाक्टर हूँ किन्तु ये मेरे साथ जो हैं ये पागलों के डाक्टर हैं।

मठ के ब्रह्मचारी सेवक के कहा- ओह! अच्छा! 

फिर बातचीत होने लगी। 

बातों ही बातों में मठ के सेवक (श्रीदीनार्ति प्रभु जी) ने कहा- डाक्टर साहब! एक बात बताओ कि आपके तो सारे मरीज़ पागल हैं, आपको फिर कैसे पता चलता है कि ये पागल ठीक हो रहा है? ....................स्वस्थ व्यक्ति तो बता सकता है कि मैं अब ठीक हूँ, मेरे अब दर्द नहीं  है, आदि किन्तु पागल कैसे बतायेगा कि मैं ठीक हो रहा हूँ?

डाक्टर ने कहा - वैसे तो अब बहुत सारे instruments आ गये हैं जिनसे वो कितना ठीक हो रहा है, पता चल जाता है किन्तु हमारे इलाके में अभी वो सुविधायें नहीं पहुँची हैं। फिर भी हमारे अपने तरीके हैं जिससे पता चलता है कि ये पागल ठीक हो रहा है।

सेवक - डाक्टर साहब! कोई एक तरीका तो बताओ।

डाक्टर - हम क्या करते हैं.................हमने एक पानी का तालाब बनाया हुआ है। एक बड़ा सा ट्ब ले आते हैं............ हम पागलों को बोलते हैं, ये लो बाल्टियाँ , सब इसमें पानी भरो। तालाब से पानी लाओ। सब लोग बाल्टी लेकर जाते हैं तालाब से पानी लेते हैं और ट्ब में लाकर डालते हैं। सभी काम पर लग जाते हैं। हम जो बाल्टी देते हैं, उसके नीचे तला नहीं होता है। नीचे से खाली होती है। वो तालाब में बाल्टी को डुबाता है और ट्ब में पलट देता है। पागल को पता नहीं लगता कि पानी नहीं आ रहा है। किन्तु कोई-कोई सोचता है कि डुबा तो रहा हूँ लेकिन पानी नहीं आ रहा है……………………बाल्टी तो है फिर पानी क्यों नहीं आ रहा,.................... फिर वो पूछता है कि डाक्टर साहब इसमें पानी क्यों नहीं आ रहा है? तब हम सोचते हैं कि इसका दिमाग अब ठीक होने लगा है क्योंकि उसका दिमाग काम करने लगा………वो सोचने लगा है………

ऐसे ही आध्यात्मिक दृष्टि से जो पागल हैं उनको पता नहीं लगता है कि दुनिया में रहते हुए हम कितने दुःखी हैं? अथवा हम क्यों दुःखी हैं? बस पगलों की तरह काम ही करते रहते हैं..............काम ही करते रहते हैं……दुनिया के काम, जो सारे कर रहे हैं, वो भी करते हैं।

किन्तु जो थोड़ा ठीक होता है, वो सोचता है कि मुझे भगवान ने मनुष्य क्यों बनाया? क्यों मैं दुःखी हूँ? मैं तो दुःख के लिए कोई काम नहीं कर रहा हूँ, फिर भी दुःख मुझे सता रहे हैं, क्यों?  

वो सोचने लगता है…….............जब उसको समझ में नहीं आता है, तो फिर वो महात्माओं के पास जाता है और पूछ्ता है कि मैं दुःखी क्यों हूँ?  

अथवा वो शास्त्रों में खोजता है कि दुःख का कारण क्या है?

जब तक हमारे हृदय में ये बात नहीं आयेगी कि मैं दुःखी क्यों हूँ? मेरा कल्याण का रास्ता क्या है, तब तक संसार से मुक्त होने का समय नहीं आता।

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