नन्दनन्दन भगवान श्रीकृष्ण वृज में भक्तों के साथ आनन्द से रह रहे हैं। उन्हें आनन्द दे रहे हैं और स्वयं भी प्रसन्न हो रहे हैं।
छोटे बालक के रूप में सभी के बीच में रह रहे हैं। मैया यशोदा बीच-बीच में किसी न किसी को कह देतीं कि इसका ध्यान रखना ताकि मैं और काम कर सकूँ।
एक दिन उन्होंने कुछ गोपियों से कहा कि लाला का ध्यान रखना, मैं ज़रा घर का काम निपटा लूँ। इसके साथ खेलो।
नन्द भवन का बड़ा सा बरामदा है। एक तरफ बड़ी गोपियाँ बैठ कर अपना-अपना काम कर रही हैं।साथ-साथ गोपाल को भी देख रही हैं, दूर-दूर से।
श्रीकृष्ण के पास बैठ कर कुछ युवा गोपियाँ खेल रही हैं।
कन्हैया भी उनके साथ खेलने लगे। कुछ ही देर में गेंद के साथ सभी खेलने लगे। युवा गोपियों को कुछ शरारत सूझी।
वे स्वयं ही खेलने लगीं और श्रीकृष्ण को खेल से बाहर सा कर दिया। कन्हैया को यह अच्छा नहीं लगा। छोटे बालक की लीला कर रहे हैं, रूठ गये।
रूठ के वो गेंद पकड़ ली और स्वयं ही खेलने लगे।
गोपियाँ कौन सी कम हैं?
उन्होंने आपस में कुछ वार्ता की और शीघ्रता से वो गेंद जिससे कन्हैया खेल रहे हैं, पकड़ ली और भाग गईं। कुछ दूर जाकर सब हँसने लगीं कि देखें अब कन्हैया क्या करता है?
कन्हैया कौन से कम हैं?
वे भी शीघ्रता से गोपियों के पीछे भागे और जैसे-तैसे एक गोपी को पकड़ लिया उन्होंने। बड़ी गोपियाँ दूर से देख रही हैं कि क्या हो रहा है?
कन्हैया उस गोपी का बाज़ु मरोड़ते हुए बोले--- क्यों री! तैने मेरी गेंद उठाई है?
गोपी भाग रही है, किन्तु श्रीकृष्ण की पकड़ के कारण उसकी गति कुछ कम हो गई है। बोली--- मैं भला तेरी वो पुरानी से गेंद क्यों उठाऊँगी?
बालकृष्ण--- अरी! तू चोर है। तू हँस रही है, अर्थात् तूने गेंद चुराई है।
दृश्य कुछ ऐसा बना कि गोपी अब चल रही है और कन्हैया ने उसे पकड़ा हुआ है। (भगवान जिसे पकड़ लें उसे छोड़ना तो वे जानते ही नहीं हैं) गोपी के चलने के कारण साथ में घिसट रहे हैं!
गोपी ने कहा--- देख लाला! तू मुझे छोड़, नहीं तो मैं एक दूँगी तुझे घुमा के। मैंने तेरी कोइ गेंद नहीं ली है।
कन्हैया--- मैंने देखा है कि तूने ही गेंद चुराई है।
इससे पहले कि वे कुछ और कहते, गोपी ने झटके से हाथ छुड़ाया और भाग गई। इस आपा-धापी में परब्रह्म श्रीकृष्ण धम् से नीचे गिर गये।
बड़ी गोपियाँ भागी-भागी आईं व छोटी गोपियों को लगभग डाँटते हुए कहा--- अरी! कहाँ चली गईं सारी की सारी, लाला की गेंद दो। गेंद को लाओ।
एक ने फटाफट श्रीकृष्ण को उठा लिया और उन्हें सहलाने लगीं।
ब्रह्माण्ड के सारे ऐश्वर्यों के स्वामी एक छोटी सी गेंद के लिए लड़ रहे हैं, केवल अपने भक्तों को आनन्द देने के लिए। और उनके आनन्द में स्वयं भी आनन्दित हो रहे हैं।
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