मंगलवार, 6 जुलाई 2021

महात्यागी

 मठ के महात्माओं के आचरण, खानपान व भजन की महिमा सुनकर एक मारवाड़ी सज्जन मठ में आये। भगवान की सेवा में कुछ द्रव्य व रुपये अर्पण करते हुए तथा महात्मा जी को प्रणाम करते हुए कहने लगे, 'महात्मा जी ! मैंने आपके मठ मन्दिर के महात्माओं की बहुत प्रशंसा सुनी, वास्तव में आप लोग बड़े त्यागी हैं।' 


उस सज्जन की बात सुनकर महात्मा जी मुस्कराए और कहने लगे, 'नहीं, हम लोग त्यागी नहीं हैं, त्यागी तो आप हैं। ' महात्मा जी की बात सुनकर वह व्यक्ति कहने लगा, 'महात्मा जी ! आप मेरा पहास किसलिए करते हैं, मैं तो संसार में फंसा हुआ एक गृहस्थी हूँ, त्यागी तो आप ही हैं।'                                               
महात्मा जी ने मुस्कराते हुए फिर उसी अन्दाज़ में कहा, 'भाई, हम कहाँ के त्यागी, हम से बड़े त्यागी तो आप हैं।'                                                                                                           महात्मा जी की बात सुनकर मारवाड़ी सज्जन आश्चर्य में पड़ गये और कहने लगे ,' महाराज जी! आप बार - बार मेरा उपहास क्यों करते हैं? यदि सच पूछें तो संसार में फंसा, मैं एक ऐसा प्राणी हूँ जिसे दुनियाँ के धन्धों से फुरसत ही नहीं है, भगवान को याद करने के लिए।'                             

महाराज जी ने कहा, जो भी हो वास्तव में आप हैं महात्यागी।'                   

(मारवाड़ी सज्जन की समझ में ही नहीं आ रहा था कि आखिर ये चक्कर क्या है? उसने सोचा कि मैं तो संसार में फंसा हुआ हूँ, मैं भला महात्यागी कहाँ से आया? त्यागी तो महात्मा जी हैं जिन्होंने दुनियाँ के भोगों को लात मार दी और हर समय भगवान के भजन में मस्त रहते हैं।)

मारवाड़ी सज्जन ने कहा, 'महात्मा जी ! मैं तो विषयी हूँ । पर आप मुझे बार-बार त्यागी क्यों कहे जा रहे हैं, जबकि त्यागी तो आप ही हैं।' 

उक्त मारवाड़ी सज्जन के सवाल का उत्तर देते हुए महात्मा जी ने कहा , 'देखो, हम लोग तो छोटे त्यागी हैं क्योंकि हमने तो उन विषय-भोगों को त्यागा है जो कि क्षणिक हैं , नाशवान हैं व जीवों को दुःख देने वाले हैं जबकि आपने तो सबसे महान वस्तु भगवान् का एवं सत्संग का परित्याग किया हुआ है। इसलिए आप ही 'महात्यागी' हैं, हम नहीं। हम तो तुच्छ सांसारिक वस्तुओं को ही त्याग पाये हैं इसलिए हम तो छोटे त्यागी हैं जबकि आपने उस महान् वस्तु (भगवान्) का ही त्याग कर दिया है इसलिए आप ही महात्यागी हैं।'   

-- श्रील भक्ति सर्वस्व निष्किंचन महाराज जी (श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ)  

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