भजन करना घाटे का सौदा नहीं है। भजन करने वाला माला माल हो जाता है। शरणागति के साथ भजन करने वाले को हरि-भक्ति माला-माल कर देती है। हरि भक्ति करते हुए व्यक्ति ऐसी स्थिति पर पहुँच जाता है कि वो तृप्त हो जाता है, आनन्द से भर जाता है।
इस स्थिति को प्राप्त करने के बाद व्यक्ति को लगता है कि इससे श्रेष्ठ कुछ और है ही नहीं। एक बार की बात है। एक व्यक्ति महान भक्त श्रील सनातन गोस्वामी जी के पास आया व बोला - मुझे भगवान केदारनाथ जी (शिव जी महाराज जी) ने भेजा है। उन्होंने कहा था कि धन चाहिए तो सनातन गोस्वामी के पास चले जाओ।
सनातन गोस्वामी जी -- भाई! एक समय तो मेरे पास धन था। मैं प्रधान मन्त्री था तब आते तो मैं तुम्हें माला-माल कर सकता था, किन्तु अब तो मेरे पास ऐसा कुछ नहीं है।
वो व्यक्ति -- जी हाँ, मैं यह देख पा रहा हूँ।
इतना कहकर वो लौट गया।
कुछ ही देर में श्रील सनातन गोस्वामी जी को याद आया कि उनके पास एक स्पर्श मणि थी। उन्होंने शीघ्रता से उस व्यक्ति को बुलाया और कहा कि मेरे पास एक पारस मणि थी, मुझे याद नहीं कि कहाँ पर रखी थी, उसे ढूँढ सको तो ले जाओ। बहुत ढूँढने पर पारस मणि कबाड़ में पड़ी मिल गयी।
उस व्यक्ति ने उस मणी को लोहे को छुआ, वो सोने कें परिवर्तित हो गया। यह देख वो प्रसन्न हो गया कि मेरे जैसा संसार में धनी नहीं हो सकता। मैं लोहा खरीदूँगा और सोना बनाऊँगा। वो खुशी से नाचने लगा।
श्रील सनातन गोस्वामी जी को बहुत धन्यवाद देता हुआ, वो वहाँ से चला निकला।
श्रील सनातान गोस्वामी जी की कृपा से, श्री शिव जी महाराज जी की कृपा से उसका मन बदल गया, कुछ दूर जाकर सोचने लगा कि इतनी दुर्लभ पारस मणि, श्रीसनातन गोस्वामी जी ने फेंकी हुई थी और उन्हें याद भी नहीं था कि कहाँ फेंकी हुई है। इसका अर्थ यह हुआ कि उनके पास इससे भी बड़ा धन है। कौन सा धन है उनके पास? वो लौटा।
सारी बात श्रील सनातन गोस्वामी जी को कही।
श्रील सनातन गोस्वामी जी ने कहा -- हाँ! वो तो है। हरिनाम ऐसा धन है जिसके आगे सभी धन तुच्छ हैं।
श्रील सनातन गोस्वामी जी के दर्शन से ही उसका मन परिवर्तित हो गया। उसने कहा - प्रभो! मैं भी यह धन चाहता हूँ जिसके आप धनी हैं।
श्रीसनातन गोस्वामी जी -- यदि यह धन चाहिए तो पारस मणि तो यमुना में फेंक दो।
उसके वैसा ही किया और उसके बाद हरिनाम का रसास्वादन किया।
भगवद् भजन करने से, उसका रसास्वादन हो जाता है तो पिछ्ले कर्मानुसार अथवा कोई दुःख उसके पास भी आ जाये तो भी वो विचलित नहीं होता।
ना सुख, ना दुःख्…………वो तो भगवान की सेवा में ही लीन रहता है।
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