गुरुवार, 5 नवंबर 2020

मन तो बहुत चंचल है, जी..... -2

भगवान सर्वज्ञ हैं, अन्तर्यामी हैं, सनातन पुरुष हैं, अतः हरेक के दिल की बात जानते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया --- ये मन ही तुम्हें संसार में फंसायेगा और यही मन तुम्हें संसार से निकाल भी देगा। अगर संसार के विषयों में ये मन आसक्त है, जैसे आँखों का विषय है रूप देखना, कानों का विषय है सुनना, जिह्वा का विषय है खाना, नाक का विषय है सूँघना, त्वचा का विषय है स्पर्श करना, तो हमारी लुटिया डूब जाएगी। अतः मन को ऐसा बनाओ कि वो इस संसार से हमारा उद्धार करे।  

श्रील भक्ति विनोद ठाकुर जी कहते हैं कि अगर मन संसार के विषयों में फंसा हुआ है तो यह हमारा शत्रु है। अगर ये वहाँ से निकला हुआ है, तो इससे बढ़िया कोई मित्र नहीं। 

जिसने अपने मन को जीत लिया है, वो संसार से पार हो जायेगा। किन्तु जो मन से जीता नहीं है, उसे मन टिकने नहीं देगा। चंचल मन साधना करने नहीं देगा। इसलिए कभी-कभी अपने मन को समझाया करें, कभी-कभी मन किस दिशा में भाग रहा है, उसके बारे में चिन्तन किया करें। 

कभी-कभी अपनी दिनचर्या में बदलाव लायें। कभी-कभी मन को बोलें, आज मेरे गुरूजी का जन्म-दिन है या आज एकादशी है, इसलिए आज फेसबुक पर कोई काम नहीं करूँगा, आज कोई फिल्म नहीं देखूँगा। 

इस प्रकार जब हम बीच-बीच में संकल्प लेंगे तो हमारा मन कितना चंचल है, यह हमें पता चल जायेगा। अगर हम अपने संकल्प में पूरे उतरे, तो हम समझ लेंगे कि मन हमारे अधीन है। तब यह मन आपका मित्र हो आपका बेड़ा पार करवा देगा।

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि यह जो मन है, यही मन हमारा मित्र है और शत्रु भी। 

जो मन हमारे कहने में है, हमारी बात मानता है, वो हमारा मित्र है।

इसलिए मन को नियंत्रण में करें। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें