मंगलवार, 19 मई 2020

आपको श्रीमन् नित्यानन्द प्रभु का मन्त्र शिष्य भी कहा जाता है।

श्रील वृन्दावन दास ठाकुर जी ने परम पतित पावन श्रीनित्यानन्द प्रभु की कृपा प्राप्त की थी, इसलिए आपको श्रीमन् नित्यानन्द प्रभु का मन्त्र शिष्य भी कहा जाता है।

आपने 1457 शकाब्द में 'श्रीचैतन्य भागवत' नामक अतुलनीय ग्रन्थ की रचना की थी।

श्रील कृष्णदास कविराज गोस्वामी जी ने श्रीचैतन्य चरितामृत में लिखा --

श्रीचैतन्य लीलार व्यास-दास वृन्दावन ।
मधुर करिया लीला करिला रचन॥  (चै-चै-आ / 48)
अर्थात् श्रीवृन्दावन दास ठाकुर सनातन धर्म के मूल गुरु श्रीकृष्ण द्वैपायन वेद व्यास जी के अवतार हैं । इस अवतार में आपने जो श्रीचैतन्य महाप्रभु की लीला का वर्णन किया है उसे अति मधुर और अतुलनीय कहना होगा। ग्रन्थ रचना के समय श्रीनित्यानन्द प्रभु जी की लीला वर्णन करने में ही खो जाने से कारण श्रीवृन्दावन दास ठाकुर जी ने श्रीचैतन्य महाप्रभु जी की किसी किसी लीला का सूत्र रूप में ही वर्णन किया है। विशेषतः श्रीचैतन्य महाप्रभु जी की अन्तिम लीला असम्पूर्ण रह गयी। श्रील वृन्दावन दास ठाकुर जी द्वारा जो सूत्र रूप में वर्णित है, और श्रीचैतन्य महाप्रभु जी की असम्पूर्ण अन्तिम लीला को ही श्रीचैतन्य चरितामृत में विस्तार रूप से वर्णन किया है।

ग्रन्थ विस्तार भय छाड़िला ये ये स्थाने।
सेइ सेइ स्थाने किछु करिब ब्याख्याने॥ (चै-चै-आ / 49)

अतः श्रीमन् नित्यानन्द प्रभु एवं श्रीमहाप्रभु की सम्पूर्ण लीलाओं के रसास्वादन के लिए हमें श्रील वृन्दावन दास ठाकुर द्वारा रचित श्रीचैतन्य भागवत तथा श्रील कृष्ण दास कविराज गोस्वामी द्वारा रचित श्रीचैतन्य चरितामृत ग्रन्थों को पढ़ना चाहिए।

श्रील वृन्दावन दास ठाकुर जी की जय !!!!!!!

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