बुधवार, 8 अप्रैल 2020

श्रीश्यामानन्द जी

श्यामा जी को अर्थात् राधाजी को आनंद देने के कारण ये श्यामानन्द जी के नाम से प्रसिद्ध हुए......
लीला कुछ इस प्रकार है कि श्यामानन्द जी का नाम इससे पूर्व दु:खी कृष्ण दास था। इनके गुरुदेव श्रीहृदय चैतन्य जी ने इन्हें वृन्दावन में श्रीजीव गोस्वामी जी आनुगत्य में हरिभजन करने का तथा उनसे शास्त्र अध्ययन का आदेश दिया।इन्होंने जब श्रीजीव गोस्वामी से सेवा प्रार्थना की तो उन्होंने इन्हें प्रतिदिन कुंज-कानन में झाड़ू लगाने की सेवा प्रदान की।
श्रीजीव जी की आज्ञा पाकर आप बड़े भाव से नित्यप्रति झाड़ू सेवा करने लगे। उनकी सेवा सेवा से प्रसन्न होकर राधा जी ने इन पर कृपा करने की इच्छा की और वहां भ्रमण करते समय अपना नुपुर वहीँ गिरा दिया।
दुःखी कृष्ण दास जी ने झाडू देते हुए वह नुपुर देखा तो उसे मस्तक पर लगाया। मस्तक पर लगाते ही राधारानी जी की कृपा से वहां पर नुपुर का चिन्ह बन गया ।
मठ -मंदिर या धाम में झाड़ू सेवा से क्या लाभ मिलता है, इसका साक्षात् प्रमाण हैं---- परम वैष्णव श्रीश्यामानंद प्रभु जी हैं, जिन्होंने नित्यप्रति झाड़ू सेवा करके श्रीश्यामा जी को आनंद प्रदान किया जिस के कारण वैष्णवाचार्य श्रीजीव गोस्वामी जी ने उन्हें श्यामानन्द जी की उपाधि प्रदान की । यही कारण है कि दु:खी कृष्ण दास जी वैष्णव जगत में श्यामानन्द जी के नाम से प्रसिद्ध हुए ।
श्रीश्यामानन्द जी ने कीर्तन के द्वारा बहुत प्रचार किया। उनके प्राणों को हर लेने वाले रेणेटी सुर में कीर्तन करने से ही श्रोता मोहित हो जाते थे ।
आज उनकी आविर्भाव तिथि में कोटि कोटि दण्डवत् प्रणाम करते हुए उनकी कृपा प्रार्थना करते हैं कि हममें भी सेवाभाव उदित हो और हम भी राधामाधव जी की कृपापात्र बन सकें ।
श्रीवृन्दावन में श्रीश्यामानन्द प्रभु जी के द्वारा सेवित विग्रह *"राधा श्यामसुन्दर जी'* उनकी ही परम्परा के भक्तों के द्वारा अब राधा श्यामसुन्दर मन्दिर में सेवित हो रहे हैं।
ये मंदिर गौड़ीय वैष्णवों की दर्शनीय स्थली है।
आज श्रीश्यामानन्द जी की आविर्भाव तिथि है।
उनके श्रीचरणों में प्रणाम......प्रणाम ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें