सोमवार, 6 जनवरी 2020

प्रार्थना कैसी-कैसी?

व्यक्ति की अगर सोच ठीक होगी तो उसकी इच्छायें भी ठीक होंगीं। इच्छायें यदि ठीक होंगी तो क्रियायें भी ठीक ही होंगी। सोच ही गलत है तो क्रियायें भी गलग हो जायेंगी। इसीलिये तो भगवान कहते हैं -- जो लोग निरन्तर बड़े प्यार के साथ मेरी सेवा करते रहते हैं, मैं उनको बुद्धि देता हूँ की आगे क्या करना है, सही निर्णय कैसे लेना है। अतः व्यक्ति की सोच ठीक होनी चाहिये।

अब विचार करने की बात है कि हमारी सोच कैसी है? क्या हमारी सोच एक शरणागत भक्त जैसी है? इसके लिये  महान वैष्णव आचार्य श्रील भक्ति विनोद ठाकुर जी ने बहुत से भजन लिखे। जैसे एक भजन में उन्होंने लिखा कि हे प्रभु मैं तो आपसे तो मोक्ष भी नहीं चाहता हूँ, आपने अगर मुझे दोबारा जन्म देना हो तो दे देना, कोई बात नहीं…अगर आपकी इच्छा हो  मुझे दोबारा जन्म तो दे देना, बस मेरी प्रार्थना केवल इतनी है कि भक्त के घर में जन्म देना। आप पूछ सकते हैं कि उससे क्या होगा? तो उससे यह होगा कि भक्त के घर में जन्म लेने से छोटी उम्र में ही बच्चा भक्ति की क्रियायें अपने आप करने लगता है, उसके माता-पिता उसे प्रणाम कराते हैं। बचपन से ही माता-पिता उस बच्चे को कहते हैं, सिखाते हैं कि भगवान को प्रणाम कर, संतों को, गुरुजनों को प्रणाम कर, प्रसाद ले, चरणामृत ले, आदि। जन्म से ही ये संस्कार जब मिलेंगे और पिछली सुकृतियाँ भी होंगी तो बड़िया भक्त तो बनाना ही है। 

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