वृत्र नाम के भगवान के एक भक्त की श्रीमद् भागवत में चर्चा है। हवन कुन्ड से उनका प्राकट्य हुआ था। उनको जिस दिन भगवद् अनुभूति हुई, उन्हें भगवान संकर्षण अर्थात् बलराम जी के अंश श्रीसंकर्षण की अनुभूति हुई, उसी दिन भगवान उनके समक्ष प्रकट हो गये और भगवान ने कहा कि मुझ से वर्दान मांगो, तो वृत्र भगवान से कहता है कि हे प्रभु! मुझे ये वरदान दें कि मेरी मित्रता, मेरा लगाव, मेरा प्रेम आपके प्रेमी भक्तों से हो जाये, बस मुझे यही चाहिये कि आपके प्रेमी भक्तों से मेरी मित्रता हो जाये।
जब वृत्र की इन्द्र से युद्ध की ठन गई तो युद्ध में ही वृत्र इन्द्र से बोला -- तुम मुझे अपने वज्र से मार दो, क्योंकि मैं अपने प्रभु के पास जाना चाहता हूँ। हुआ यह था कि इससे पहले जब इन्द्र ने उस पर गदा से वार किया था तो वृत्र ने बायें हाथ से गदा को पकड़ा और उलता मारा था जिससे इन्द्र, ऐरावात हाथी के साथ चक्कर खाता हुआ पीछे जा गिरा था। वृत्र के ऐसा कहने पर कि मुझो मारो, इन्द्र मन ही मन सोचता है कि इसके पास वो कला है, जो भी अस्त्र शस्त्र का प्रयोग करूँगा, ये बायें हाथ से पकड़ कर मुझे मारेगा, और ये वज्र तो अमोघ है, ये मुझे ज़िन्दा ही नहीं छोड़ेगा।
अतः इस डर से इन्द्र वृत्र के कहने पर भी उस पर वज्र से वार नहीं करता। उसको ऐसा करते देख वृत्रासुर उसे समझाते हैं कि ये वज्र वैसा नहीं है, इसे तो भगवान ने दधिचि की हड्डियों से बनवाया था, मुझे मारने के लिए, इसलिए मारो मुझे। वृत्र जानते हैं कि इन्द्र से सोच कर घबरा रहा है कि मैं इसका स्वर्ग का राज्य ले लूँगा, लेकिन मुझे तो उस राज्य की इच्छा ही नहीं है, अब इसको कौन समझाये, व्यक्ति जैसा होता है वो दूसरों को भी वैसा ही सोचता है।
अतः वृत्र मन ही मन अपने प्रभु से बात करने लगा, हे प्रभु मेरी तो ऐसी स्तिथि है जैसे चिड़िया के छोटे-छोटे बच्चे उड़ना चाहते हैं, उड़ नहीं सकते भूख लगी है, चींची करते हैं कि कब माँ आयेगी और उनके मुख में दाना डालेगी। प्रभु मेरी भी वैसी ही स्थ्तिति है मैं उड़ कर आपके पास आ नहीं सकता हूँ केवल यहाँ से पुकार सकता हूँ, रो सकता हूँ। हे प्रभु! मैं भी तमो-रजो-गुणों की रस्सी से बँधा हुआ हूँ, मैं आपके पास आ नहीं सकता हूँ, प्रभु आप मेरे पास आयें तो ही होगा।
प्रभु मैं ये भी नहीं चाह्ता हूँ कि मुझे आप मोक्ष दो, संसार में बहुत कष्ट हैं संसार के लोग दुःखी हैं, मुझे उनसे बचाओ, मेरी तो केवल यही प्रार्थना है कि मुझे अपने भक्तों का संग दे दीजिये।
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