मंगलवार, 10 सितंबर 2019

उस समय आपको आचार्य नियुक्त किया गया था।

श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर प्रभुपाद जी बताते हैं कि भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभुजी के प्रिय श्रील रूप गोस्वामी व श्रील सनातन गोस्वामी जी के छोटे भाई के पुत्र श्रील जीव गोस्वामी जी को उनकी वैष्णवता और उनकी विद्वता को देखकर उड़ीसा, बंगाल तथा मथुरा मण्डल के गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय का सर्वश्रेष्ठ आचार्य नियुक्त किया गया था।

आप सभी को श्रीश्रीगौर सुन्दर की प्रचारित शुद्ध-भक्ति की बात समझाते व सभी से हरि भजन कराते।

आपने बहुत से ग्रन्थ लिखे। उनमें से एक है -- भक्ति सन्दर्भ।   

आप उसमें बताते हैं - इस कलियुग में कीर्तन भक्ति के अतिरिक्त अन्य और भक्ति साधनों का अनुष्ठान करना हो तो उन्हें कीर्तन भक्ति के सहयोग से ही करना चाहिये।                                                                                 
यद्यप्यन्या भक्तिः कलौ कर्तव्या,
तदा कीर्तनाख्य - भक्ति - संयोगेनैव ।

श्रील जीव गोस्वामी जी ने ही सबको यह बताया की हरिनाम के जप से कीर्तन का 100 गुना ज्यादा फायदा होता है। तो क्यों न, कीर्तन किया जाये!

श्रील हरिदास ठाकुर जी नित्यप्रति जो तीन लाख हरिनाम किया करते थे, उसमें पहला 1 लाख हरिनाम उच्च स्वर से किया करते थे।

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