शुक्रवार, 27 सितंबर 2019

भजन रहस्य -1

मान लीजिये कि एक मोबाइल फोन आपने सामने रखा है, उसमें बड़िया कम्पनी का इन्टरनेट है, तेज गति से चलने वाला, बस इतनी सी बात है कि आपके पास उसका पासवर्ड नहीं है,  तो क्या करेंगे आप? बिना पासवर्ड के आप उस फोन को इतेमाल नहीं कर सकते। ऐसे ही आपने भी देखा होगा कि नम्बर वाला एक ताला होता है, जो एक दरवाज़े पर लगा है और आपको उसका नम्बर मालूम नहीं है। ऐसे में जितना मर्जी चेष्टा करो, खुलेगा नहीं, कभी तुक्के से खुल जाये, तो अलग बात है, लेकिन खुलेगा नहीं, अगर नम्बर पता है तो उसी समय खुल जायेगा, वो ताला।

इसी प्रकार हरि-भजन के भी सीक्रेट होते, राज होते हैं। ये सीक्रेट, अनुभवी महात्माओं के पास होते हैं। अगर वो सीक्रेट हमें नहीं पता, रहस्य नहीं पता, सूत्र हमें नहीं पता, तो कई बार भजन के नाम पर बहुत ज्यादा मेहनत हो जाती है, किन्तु भजन हो ही नहीं पाता, कोई उन्नति ही नहीं होती, इसलिये अनुभवी महात्माओं की संगति बहुत ज़रूरी है। हमारे महान वैष्णव आचार्य श्रील भक्ति विनोद ठाकुर जी ने हमारे कल्याण के लिए बहुत सी बातें लिखीं उनमें से एक में लिखा, जिन वैष्णवों की संगति में आपको रहना है, वो स्निग्ध स्वभाव के होने चाहिये, एक दम मीठा स्वभाव वाले होने चाहिए, मिलनसार स्वभाव के होना चाहिये। साथ ही स्वजातीय होना चाहिये, यानि कि आप भी कृष्णभक्त, वो भी कृष्णभक्त तो श्रीकृष्ण लीला रसास्वादन में आनन्द आयेगा, गौड़ीय हों, श्रीमहाप्रभु जी को मानते होंं, श्रीनित्यानन्द जी को मानते हों, तो आपको बहुत अच्छा लगेगा। तीसरा है कि वो आपसे श्रेष्ठ हों। उनके साथ रहने से आपके अन्दर दीनता बनी रहेगी। जैसे पिता के सामने खड़े होने से स्वाभाविक भाव आयेगा कि मैं पुत्र हूँ, लेकिन पुत्र के आगे खड़े होने स भाव आयेगा कि मैं पिता हूँ। उसी प्रकार श्रेष्ठ वैष्णव, अनुभवी वैष्णव अथवा आप से अधिक भजन करने वाले वैष्णव के साथ अगर आप रहोगे, तो आपका वैष्णवों के साथ दीनतापूर्ण व्यव्हार अपने आप होगा, आपका श्रेष्ठ वैष्णवों के आगे झुकना अपने-आप होगा।  आपने बहुत से ग्रन्थ न पढ़े हुए हों तो भी आपको बहुत तरह का शास्त्र ज्ञान होने लग जायेगा।

हमारे गोस्वामी तुलसी दास जी ने लिखा कि शठ, दुष्ट व्यक्ति को भी अगर अच्छे भक्तों की संगति मिल जाये तो दुष्ट व्यक्ति भी भक्त बन जाता है।

हमारे श्रील कृष्ण दास कविराज गोस्वामी जी ने लिखा -- जितने भी शास्त्र हैं उनमें भगवद् भक्तों के संग के लिये कहा गया है। यहाँ तक बताया गया है कि पलक झपकनेजितने समय के लिये भी यदि आपको साधु-संग मिल जाये तो वो आपको भगवद् प्राप्ति करवा देगा अथवा करा सकता है।

श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी ने एक दिन इसकी व्याख्या  बतया कि लव मात्र साधु संग कैसे हमारा कल्याण कर सकता है? वो कहते हि शुद्ध भक्त जब कुछ बोलते हैं न, उसमें कोई सूत्र मिल जाता है, और वो सूत्र हमारा पथ प्रदर्शन करता है।

जैसे कुछ लोग वृन्दावन से दिल्ली की तरफ आ रहे थे तो उन्होंने सोचा कि यमुना एक्स्प्रेस से चलते हैं, फटाफट पहुँच जायेंगे। वे तेज़ी से गाड़ी दौड़ाने लगे। आगे जाकर साइन-बोर्ड आया कि आगरा 40 किलोमीटर तो उन्होंने समझा किहम दिल्ली की ओर नहीं बल्कि आगरा की ओर जा रहे हैंं। अब पूछो कि आगरा 40 किलोमीटर है, उसे पढ़ने में कितना समय लगा, 'लव मात्र', किन्तु इतना पढ़ने से ही, उसी क्षण उनकी दिशा ही बदल गई, नहीं तो कहाँ पहुँच जाते। ऐसे ही शुद्ध भक्त के साथ संग करने से ऐसी बातें पता चल जाती हैं जो हमारे भजन कि दिशा और दशा दोनों बदल देते हैं।

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