गुरुवार, 3 अगस्त 2017

कौन है परम नियन्ता?

जिस ज्ञानी ने वेदों का ठीक से अध्ययन किया हो और भगवान् श्रीचैतन्य महाप्रभुजी जैसे महापुरुषों से ज्ञान प्राप्त किया हो तथा यह जानता हो कि इन उपदेशों का किस प्रकार उपयोग करना चाहिये, वही यह समझ सकता है कि भौतिक तथा आध्यात्मिक जगतों के मूल श्रीकृष्ण ही हैं।

इस प्रकार के ज्ञान से वह भगवद्भक्ति में स्थिर हो जाता है। वह व्यर्थ की टीकाओं से या मूर्खों के द्वारा कभी पथभ्रष्ट नहीं होता। 

सारा वैदिक साहित्य स्वीकार करता है कि श्रीकृष्ण ही ब्रह्माजी, शिवजी तथा अन्य समस्त देवताओं के स्रोत हैं। 

अथर्व वेद में (श्रीगोपाल तापनी उपनिषद् 1/24) कहा गया है ----

यो ब्रह्माणं विदधाति पूर्वं यो वै वेदांश्च गापयति स्म कृष्णः 

--- प्रारम्भ में श्रीकृष्ण ने ब्रह्माजी को वेदों का ज्ञान प्रदान किया और उन्होंने भूतकाल में वैदिक ज्ञान का प्रचार किया।  

पुनः नारायण उपनिषद् में (1) कहा गया है -- 


अथ पुरुषो ह वै नारायणोऽकामयत प्रजाः सृजेयेति 

--- तब भगवान ने जीवों की सृष्टि करनी चाही।

उपनिषद् में आगे कहा गया है -- 

नारायणाद् ब्रह्मा जायते नारायणाद् प्रजापति प्रजायते 
नारायणाद् इन्द्रो जायते। 
नारायणादष्टौ वसवो जायन्ते नारायणादेकादश रुद्रा जायन्ते नारायणाद्द्वादशादित्याः
---- श्रीनारायण से ही श्रीब्रह्मा उत्पन्न होते हैं, श्रीनारायण से ही प्रजापति उत्पन्न होते हैं, श्रीनारायण से ही इन्द्र और आठ वसु उत्पन्न होते हैं, श्रीनारायण से ही ग्यारह रुद्र तथा बारह आदित्य उत्पन्न होते हैं। ये श्रीनारायण, श्रीकृष्ण के ही आंश हैं। 

वेदों का ही कथन है ---

ब्रह्मण्यो देवकीपुत्रः 

--- देवकी-पुत्र श्रीकृष्ण ही भगवान् हैं। (नारायण उपनिषद् 4)

एको वै नारायण आसीन्न ब्रह्मा न ईशानो नपो नाग्निसमौ नेमे
द्यावापृथिवी न नक्षत्राणि न सुर्यः

-- सृष्टि के प्रारम्भ में केवल भगवान नारायण थे। न ब्रह्मा थे, न शिव। न अग्नि थी, न चन्द्रमा, न नक्षत्र और न ही सूर्य (महा उपनिषद् 1)।

महा उपनिषद् में यह भी कहा गया है कि शिवजी परमेश्वर के मस्तक से उत्पन्न हुए। अतः वेदों का कहना है कि ब्रह्मा और शिव के स्रष्टा भगवान की ही पूजा की जानी चाहिए।

मोक्ष धर्म में श्रीकृष्ण कहते हैं  --

प्रजापतिं च रुद्रं चाप्यहमेव सृजामि वै। 
तौ हि मां न विजानीतो मम मायाविमोहितौ॥
मैंने ही प्रजापतियों को, शिव को तथा अन्यों को उत्पन्न किया, किन्तु वे मेरी माया से मोहित होने के कारण यह नहीं जानते कि मैंने ही उन्हें उत्पन्न किया।

श्रीवराह पुराण में भी कहा गया है --

नारायणः परो देवस्त्स्माज्जातश्च्तुर्मुखः।
तस्माद्रुद्रोऽभवद्देवः स च सर्वज्ञतांं गतः॥

श्रीनारायण भगवान हैं, जिनसे ब्रह्मा उत्पन्न हुए और फिर ब्रह्मा से शिव उत्पन्न हुए।

भगवान श्रीकृष्ण समस्त उत्पतियों के स्रोत हैं और वे सर्वकारण कहलाते हैं। 

वे स्वयं कहते हैं -- चूँकि सारी वस्तुएँ मुझ्से उत्पन्न हैं, अतः मैं सभी का मूल कारण हूँ। सारी वस्तुएँ मेरे अधीन हैं, मेरे ऊपर कोई भी नहीं है। 

श्रीकृष्ण से बढ़कर कोई परम नियन्ता नहीं है। जो व्यक्ति प्रामाणिक गुरु
से या वदिक साहित्य से इस प्रकार श्रीकृष्ण को जान लेता है, वह अपनी सारी शक्ति श्रीकृष्णभावनामृत में लगाता है,, और सचमुच ज्ञानी पुरुष बन जाता है।

-- श्रील ए. सी. भक्ति वेदान्त स्वामी महाराजा जी (संस्थापक आचार्य , इस्कान)

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