मंगलवार, 18 अप्रैल 2017

लकड़ी का लठ्ठ जिसे 100 व्यक्ति हिला ना पा रहे हों…उसे आपने…वंशी बना लिया।

भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं में, जो द्वादश गोपाल हैं, उनमें से एक हैं 'श्रीदाम'। आप ही भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु की लीलाओं में श्रीअभिराम ठाकुर के रूप में आये। आप श्रीराम दास के नाम से भी जाने जाते थे।

आपकी पत्नी का नाम श्रीमती मालिनी देवी था।
आपका श्रीपाट, पश्चिम बंगाल के थानाकुल-कृष्ण नगर में अवस्थित है । आपके निवास स्थान पर जो मन्दिर है, उसके सामने एक तालाब है। वहाँ पर खुदाई करते हुये आपको श्रीगोपीनाथ जी का विग्रह (मूर्ति) प्राप्त हुआ था। तब से यह तालाब (पुष्करिणी) 'अभिराम कुण्ड' के नाम से प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त श्रीमन्दिर में श्रीब्रजबल्लभ (युगल) मूर्ति, श्रीशालग्राम और 
श्रीगोपाल मूर्ति भी विराजित है।
आप अत्यन्त तेजस्वी व शक्तिशाली आचार्य थे ।
आप श्रीचैतन्य महाप्रभु के अनन्य भक्ति थे । एक दिन आप संकीर्तन करते - करते भाव में विभोर हो गये। भावावस्था में आप वंशी बजाने की इच्छा से इधर-उधर घूमने लगे । घूमते - घूमते आपने देखा कि रास्ते में लकड़ी का एक बहुत बड़ा लठ्ठा पड़ा है जिसे 16 आदमी (किसी के अनुसार ये संख्या 32 थी व किसी के अनुसार 100) हिला भी नहीं पा रहे थे। 

आपने आगे बढ़ कर बड़ी ही सरलता से आपने उस लठ्ठ को उठा लिया व वंशी की तरह बजाने लगे।

श्रील अभिराम ठाकुर की जय !!!!

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