गुरुवार, 9 फ़रवरी 2017

भगवान बलराम ने जब युधिष्ठर महाराज को श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के बारे में बताया…

द्वापर युग की बात है। एक बार पाँच पाण्डव वनों में घूमते-घूमते, श्रीनित्यानन्द जी के जन्म स्थान, पश्चिम बंगाल के एकचक्र नामक गाँव में पहुँचे। पाण्डव स्वभाव से ही सज्जन भक्त थे व लोगों की सेवा में व्यस्त रहते थे। स्थानीय लोगों के अनुरोध पर भीम ने एक शक्तिशाली राक्षस का वध भी किया था। 

युधिष्ठिर एकचक्र के सुन्दर वातावरण, महकते वायु मण्डल को देख अत्यधिक चकित थे। इतने वनों में वे घूमे पर ऐसा मनमोहक उपवन उन्होंने नहीं देखा था। उनके मन में रह-रह कर यही बात उठती थी की हो न हो इस स्थान का श्रीकृष्ण से जरूर कुछ सम्बन्ध है अन्यथा इसमें इतनी सुन्दरता होने का कोई कारण नहीं है।
परन्तु फिर वो यह विचार करने लगे कि श्रीकृष्ण ने कभी जिक्र नहीं किया। उसी उधेड़बुन में वे सो गये तो रात के समय स्वप्न में उन्हें भगवान बलराम जी ने दर्शन दिये। 

भगवान बलराम बोले, -- 'यहाँ से कुछ ही दूरी पर नवद्वीप नामक स्थान है गंगा नदी के किनारे । कलियुग के प्रारम्भ में श्रीकृष्ण, एक ब्राह्मण के घर में, नवद्वीप में प्रकट् होंगे, हालांकि वे अपना रूप छिपाये रहेंगे। उन्हीं की इच्छा से उनके सेवक-भक्त अनेक स्थानों पर जन्म लेंगे। उन्हीं की इच्छा से मैं यहाँ पर जन्म लूँगा।' इतना कह कर श्रीबलराम जी अदृश्य हो गये।
महाराज युधिष्ठिर की नींद टूट गयी व उन्होंने, स्वप्न की बात सभी भाईयों को सुनाई।

इधर कलियुग के प्रारम्भ में श्रीबलराम जी जब श्रीनित्यानन्द रूप में आये, उससे पहले ही उनका एकचक्र गाँव बहुत प्रसिद्ध हो चुका था। इस में बहुत से मन्दिर थे। एक बहुत ही प्राचीन शिव-पार्वती जी का मन्दिर भी था। समीप ही एक विशाल नदी प्रभावती बहती थी, जिसमें 12 महीने पानी रहता था।
आसपास के वन में अहिंसक पशुओं की भरमार थी । रात-दिन कोयल की कु-कू, भ्रमरों की गुंजार, पक्षियों की चहचहाट होती रहती थी। 

किसी को भी नहीं पता था की यह गाँव कहाँ से व कब प्रकट हुआ परन्तु यहाँ के निवासी बहुत ही सुख व आनन्द से रहते थे। एकचक्र में वैभवशाली लोगों सहित विद्वान पण्डितों का भी वास था। कुछ भविष्य ज्ञान कहते थे की इस स्थान पर श्रीबलराम प्रकट होंगे, अतः यह स्थान भी मथुरा-अयोध्या की तरह धाम है।

श्रीनित्यानन्द जी की कृपा के बिना पापी और अपराधी जीवों का उद्धार का 
कोई उपाय नहीं है। श्रीमन् नित्यानन्द प्रभु भक्ति लीला करते हुए भी स्वरूपतः भगवत-तत्त्व हैं, उनके पार्षद उनकी कृपा शक्ति का मूर्त-स्वरूप हैं। श्रीमन् नित्यानन्द प्रभु परम पतित-पावन हैं फिर उनके अन्तरंग पार्षद परम-परम पतित पावन हैं। वस्तुतः श्रीमन् नित्यान्द प्रभु भक्तों के माध्यम से ही कृपा करते हैं। 
महा-महा वदान्य श्रीनित्यानन्द प्रभु की जय !!!!!

आपकी अविर्भाव तिथि की जय !!!!!

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