शुक्रवार, 20 नवंबर 2015

राधा-गोविन्द जी की अष्टकालीय लीला - 3 / 4

श्रीराधा-गोविन्द जी की लीलाओं का स्मरण करना ही चाहिये। भगवान वन की ओर जा रहे हैं। आगे - आगे बछड़े उछलते-कूदते चल रहे हैं, उनके पीछे-पीछे गाय और फिर भगवान अपने सखाओं के साथ वन की ओर जा रहे हैं। 

इधर राधा जी, नन्द भवन में भगवान के लिये नाश्ता बना कर अपने घर चली गयीं हैं। वहाँ वे अपने घर के काम में व्यस्त हो जाती हैं। दोपहर के
समय वे राधा-कुण्ड में भगवान से मिलने जाती हैं। 

गौड़ीय वैष्णव आचार्य कहते हैं की श्रीराधा-गोविन्द जी की सभी लीलाओं में सर्वोत्तम है राधा-कुण्ड की लीला।  

श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वमी महाराज जी बताते हैं की भगवान ने ही
राधा जी से कहा था कि गृहस्थ लोग, घर में सुख-शान्ती के लिये सूर्य पूजन करते हैं। आप अपने घर में कहना की आपको सूर्य पूजन के लिये जाना है। तब वे आपको आने देंगे। राधाजी इसी प्रकार अपनी सास-ननद जटिल-कुटिला से कहती हैं की उनको सूर्य पूजा के लिये जाना है। वे दोनों खुशी-खुशी जाने की आज्ञा दे देती हैं। इसी बहाने राधाजी राधा-कुण्ड पर आ जाती हैं, जहाँ पर गोपियाँ उनका इन्तज़ार कर रही होती हैं। 

उधर भगवान गायों को बलरामजी व सखाओं के पास छोड़ कर थोड़ी देर के लिये राधा-कुण्ड पर आते हैं। वहाँ पर बहुत सी लीलायें होती हैं, जैसे झूला झूलना, आपसी मज़ाक, जल में खेलना, एक-दूसरे पर पानी डालना, वन में भ्रमण, तैरना, इत्यादि। जितने भी श्रीराधा-गोविन्दजी के जो भगवद्-प्रेम के भाव-लक्षण प्रकाशित होते हैं ऐसे लक्षण किसी और लीला में नहीं होते। इसलिये गौड़ीय वैष्णव इसे सर्वोत्तम बताते हैं।

श्रील गुरु महाराजजी, भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी बताते हैं
की एक बार ऐसा भी हुआ की किसी ने जटिला-कुटिला से कहा की ये जो आपकी बहू है, ये सूर्य पूजा के लिये नहीं बल्कि कृष्णजी से मिलने के लिये जाती हैं। तो एक दिन वे दोनों दबे पाँव राधाजी के पीछे-पीछे चल दीं। 

भगवान तो अन्तर्यामी हैं, सब जानते हैं। जैसे ही जटिला-कुटिला वहाँ आयीं, श्रीकृष्ण सूर्य-स्वरूप अर्थात् सूर्य के समान हो गये। एक दम प्रकाशमान। ऐसे जैसे सूर्य ही वहाँ आ गये हों, ऐसा तेज। जटिला-कुटिला
यह देख कर हैरान रह जाती हैं की साक्षात् सूर्य देव ही उनकी बहू की पूजा ग्रहण करने आये हुये हैं। उनकी बहू क्या अद्भुत पूजा करती है की सूर्य देव स्वयं ही वहाँ आये हुये हैं, ज़मीन पर। बहू को ऐसे पूजा करते देख वे दोनों बड़ी प्रभावित होती हैं और खुश होती हैं। वे दोनों उन लोगों  पर नाराज़ भी हो जाती हैं जिन्होंने उनके कान भरे। वे सोचती हैं कितनी अच्छी बहू है, कितना अच्छी पूजा करती है कि सूर्य देव साक्षात्  आते हैं उसकी पूजा ग्रहण करने के लिये। लोग ऐसे ही बोलते रहते हैं। 

एक बार श्रील गुरु महाराज जी ने बताया की श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ के संस्थापक नित्य लीला प्रविष्ट ॐ विष्णुपाद 108
श्रीश्रीमद् भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज जी राधा-कुण्ड की सर्वोत्तम लीला में सेवा-रत हैं, गोपी रूप में। हमारे गुरुजी श्रीभक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी नन्द-भवन में गोपी रूप में राधाजी के साथ भगवान की सेवा करते हैं। 

जगद् गुरु श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वाती गोस्वामी ठाकुर प्रभुपाद जी नयन-मणि मन्जरी हैं। श्रील भक्ति विनोद ठाकुर जी कमल मन्जरी हैं और उनकी आयु वहाँ पर साढ़े बारह साल की है।हमारा सौभाग्य है कि हमें ऐसी गुरु  -  परम्परा प्राप्त हुई है।

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