गुरुवार, 19 नवंबर 2015

राधा-गोविन्द जी की अष्टकालीय लीला - 2

गोपाष्टमी अथवा धेनु पूजा के दिन नन्द महाराज जी ने भगवान श्रीकृष्ण को गाय चराने के लिये भेजा था। इससे पहले भगवान केवल बछड़े ही चराने के लिये जाते थे। 
नन्द महाराज जी के यहाँ 9 लाख गायें थीं, जो साधारण नहीं थीं। वे सब शान्त रस की भक्त थीं।

वैसे तो श्रीश्रीराधा-दामोदर जी की सभी लीलायें मधुर हैं किन्तु यह और भी मधुर है।  

सुबह-सुबह सभी सखा नन्द-भवन में आकर यशोदा मैय्या को बोलते हैं की
लाला कहाँ है? जब माता यशोदा कहती हैं की वो तो अभी सो रहा है तो सखा कहते हैं -- माँ ! उसे उठाओ, अभी हमने दूध दुहना है, फिर गोचारण के लिये जाना है। माता के उठाने पर भगवान उठ जाते हैंं।

सखाओं के साथ गोशाला में जाते हैं, जहाँ लगभग  नौ लाख गायें हैं, बछ्ड़े हैं। ये सभी शान्त रस के भक्त हैं। इनको आनन्द देने के लिये भगवान गोशाला में जाते हैं। भगवान इनको दर्शन देते हैं, स्पर्श करते हैं। वैसे तो गायें भगवान के स्पर्श से ही दूध देना शुरु कर देती हैं, फिर भी लीला रसास्वादन के लिये भगवान कभी-कभी दूध भी दुहते हैं। सारा दूध नन्द-भवन में रख कर,  भगवान फिर सभी सखाओं के साथ स्नान को जाते हैं। 


इधर यशोदा माता देखती हैं की राधा अपनी सखियों के भोजन बनाकर जा चुकीं हैं। तब यशोदा माता भोजन श्रीकृष्ण-सखाओं को परोसती हैं।  श्रीकृष्ण उसके बाद गो-चारण के लिये जाते हैं। इधर माता यशोदा सेविका के हाथ राधाजी के लिये भगवान का प्रसाद भेजती हैं।

चौरासी कोस की वृज मण्डल परिक्रमा के समय एक बार श्रील गुरुदेव, ॐ
विष्णुपाद 108 श्रीश्रीमद् भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराजजी ने बताया कि एक बार जब श्रीकृष्ण अपने सखाओं के साथ बछड़े चराने के लिये जा रहे हैं, तो मार्ग में एक सखा कहता है - कन्हैया! ओ कन्हैया! इधर आ। भगवान जब उसके पास आते हैं तो वो कहता है - वो देख। वो पेड़ पर आम लगा है। 

भगवान - तो। 

सखा - अरे! उसे हम तोड़ेंगे और तुझे खिलायेंगे। बहुत मीठा होगा। 

भगवान - ठीक है, पर वो पेड़ देखा है। कितना बड़ा है। हम कितने छोटे हैं। कैसे पकड़ेंगे आम को? 

सखा - आम ऊपर है, तो भी तू चिन्ता न कर। अपने दोनों हाथ पेड़ पर लगा और सिर को झुका के रख। 
भगवान तो भक्त के अधीन हैं। भक्त-वत्सल हैं। भक्त की हर इच्छा को पूरी कर देते हैं। दोनों हाथ पेड़ पर लगाकर सिर झुकाकर खड़े हो गये। । सखा भगवान के कन्धे पर चढ़ गया और पेड़ का सहारा लेकर खड़ा हो गया। दूसरे सखा को बुलाकर अपने ऊपर चढ़ने को कहा। दूसरे सखा ने पहले कृष्ण जी पर पैर रखे, फिर सखा पर, फिर उनके दोनों के ऊपर पेड़ के सहारे खड़ा हो गया। 

इस प्रकार पाँच सखा एक के ऊपर एक खड़े हो गये और सबसे नीचे हैं
भगवान्। सबसे ऊपर वाले सखा ने आम तोड़ा। देखने में तो मीठा लग रहा था किन्तु उसने सोचा की कहीं ये आम फीका या कड़वा या खट्टा न हो। कन्हैया को तो मीठा आम ही देना चाहिये। यह सोचकर उसने वो आम कपड़े से साफ किया और थोड़ा चूसा। फिर उसने नीचे वाले मित्र को आम देते हुये कहा - ले यह आम ले! कन्हैया को दे। बहुत मीठा है। मैंने खा के देखा है।

नीचे वाला मित्र सोचता है -- ये हमेशा कृष्ण का मज़ाक बनाता है। हो सकता है यह आम खट्टा हो जिसको खाने से कृष्ण के दांत खट्टे हो जायेंगे, फिर यह उसका मज़ाक उड़ायेगा। मैं पहले खा कर देखता हूँ। दूसरे मित्र ने भी उस आम को थोड़ा चूस कर देखा। 
फिर उसने अपने से नीचे वाले सखा से कहा - ले यह आम ले! कन्हैया को दे। बहुत मीठा है। हम दोनों ने खा के देखा है। । 

तीसरा सोचता है - कहीं ये दोनों मज़ाक न कर रहे हों। उसने भी चख के, चूस के देखा…इस प्रकार पाँचों ने आम को चूस कर देखा, फिर वो श्रीकृष्ण तक पहुँचा। 

भगवान तो भक्त - वत्सल हैं। भक्त की जूठन भी प्रेम से खाते हैं क्योंकि उसमें भक्त का प्यार है। अपने भक्त की भक्ति को समृद्ध करने के लिये, उनके आनन्द को बढ़ाने के लिये, भगवान ने सभी सखाओं का जूठा आम जिसमें थोड़ा सा रस बचा था, उसे बड़े प्रेम से खाया। 

इस प्रकार पूरा दिन सखाओं के साथ भगवान विभिन्न लीलायें करते रहते
हैं। जब कृष्ण थक जाते हैं तब सखा उनको गोद में लिटा देते हैं, कोई उनके चरण दबाता है, तो कोइ बाज़ू, कोई पत्ते की हवा करता है तो कोई शीतल जल पिलाता है। इस प्रकार भगवान की सुबह की लीला चलती रहती है। 

भगवान के लिये सुबह का नाश्ता राधाजी बनाती हैं। वो हुआ यूँ की एक बार दुर्वासा मुनि, राधाजी के पिताजी श्रीवृषभानु राज के यहाँ आये। श्रीवृषभानु जी ने उनके चरण धोये, आरती की, बिठाया। दुर्वासा मुनि के भोजन की इच्छा होने पर, श्रीवृषभानु जी ने राधाजी को रसोई करने के लिये कहा। श्रीमती राधाजी ने बहुत से व्यंजन बनाये। दुर्वासा जी ने भोजन खाया। 
उन्हें इतना अच्छा लगा कि उन्होंने श्रीवृषभानु जी से पूछा - यह भोजन किसने बनाया है, उसे बुलाइये। जब श्रीवृषभानु जी ने राधाजी को बुलाया तो दुर्वासा मुनि ने कहा - मैं इसको आशीर्वाद देता हूँ की इसके हाथ का बना भोजन जो भी खायेगा, उसकी लम्बी आयु हो जायेगी।

यह बात जब माता यशोदा को पता चली तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। उनका तो सारा ध्यान अपने गोपाल में ही है। मन ही मन यशोदा माता ने सोचा की यह जो आशीर्वाद दुर्वासा मुनि, राधाजी को दे गये हैं, उसका फायदा उठाना चाहिये। अगर राधा मेरे लाला के लिये भोजन बनायेगी, तो मेरे लाला की उम्र लम्बी हो जायेगी। 

वैसे तो भगवान पर-ब्रह्म हैं, सनातन हैं, और राधा जी सर्व-शक्तिमयी हैं, तो भी यशोदा मैय्या का इतना स्नेह, वात्सल्य की उस भक्ति स्तर पर उनको यह भान ही नहीं की मेरा लाला परब्रह्म है। लाला की लम्बी उम्र की भावना से माता ने अपनी सेविका को राधाजी के पास भेजा और उन्हें अपने पास बुलाया। उन्होंने राधा जी से कहा - देख लाली! आज से तेरी जिम्मेवारी है, मेरे लाला के लिये नाश्ता बनाने की। मेरे कन्हैया के लिये रोज़ दिन का पहला भोजन तुम ही बनाओगी। 

इस प्रकार प्रातः काल माता यशोदा के बुलाने पर राधाजी अपनी सखियों के साथ नन्द-भवन आने लगीं।
श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी ने एक दिन अपने निजी सेवक को बताया कि जब राधाजी नन्द भवन में रसोई बनाने आती हैं तो पकाने में इस्तेमाल से पहले,  धुले हुये बर्तनों को एक बार धोना होता है और फिर कपड़े से सुखाना पड़ता है। यह जो सेवा है, यह श्रील गुरु महाराज जी की है। 

जब राधाजी रसोई बनाती हैं, उस समय श्रीकृष्ण शयन कर रहे होते हैं। राधाजी चुपके-चुपके उनके दर्शन के लिये बीच-बीच में जाती हैं। भगवान भी अधखुली आँखों से चोरी-चोरी राधाजी को देखते हैं। यह एक बाल लीला है। दोनों ही तब बहुत छोटे हैं। 

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