सोमवार, 21 सितंबर 2015

जब श्रीमती राधा जी ने अपनी बन्द आँखें खोल दीं।

अनेक लोगों की यह धारणा है कि श्रीमती राधारानी की बात शास्त्रों में नहीं है, किन्तु श्री ब्रह्मवैवर्त्त पुराण, श्रीपद्म पुराण, श्रीदेवी भागवत, श्री राधा तन्त्र, श्रीराधा वराह कल्प, इत्यादि में श्रीमती राधा जी का स्पष्ट वर्णन मिलता है।

श्रीमती राधाजी श्रीकृष्ण के बायीं ओर से प्रकट हुईं, अतः आप श्रीकृष्ण से अभिन्न हैं।
जब भगवान श्रीकृष्ण ने पृथ्वी पर आना था, तब श्रीमती राधाजी भी गोलोक से यहाँ पर आईं। 

एक दिन वृषभानु राज, यमुना नदी के तट पर सर्वोत्तम कन्या की प्राप्ती के लिये योगमाया की आराधना कर रहे थे। योगमाया कात्यानी उनकी आराधना से संतुष्ट हो गयीं वे एक दिन उनके सामने प्रकट हो कर बोलीं -- ये तेजोमय अण्डा सम्भालो। इसको अपनी पत्नी को दे देना। तुम्हें कन्या रत्न प्राप्त होगा। 

श्रीवृषभानु जी ने घर जाकर जैसे ही वो अण्डा अपनी पत्नी श्रीमती कीर्तिदा देवी को दिया, वो अण्डा फूट गया। उसमें से श्रीमती राधा रानी प्रकट हो गईं।

किसी किसी के अनुसार श्रीवृषभानु राज जी की तपस्या से प्रसन्न होकर श्रीमती राधा रानी एक बहुत सुन्दर 100 पंखुड़ियों वाले कमल पर स्वयं
उनके सामने प्रकट हो गयीं। श्रीवृषभानुराज बहुत आश्चर्यचकित हुये, किन्तु कन्या को देख बहुत प्रसन्न हुये। 

किन्तु जब उन्होंने देखा की कन्या की आँखें बन्द हैं, तो बहुत दुःखी हुये।

कन्या को उठा कर वे घर ले आये। पत्नी श्रीमती कीर्तिदा को कन्या को सौंप दिया किन्तु हर समय पुत्री के नयन बन्द देखकर , अत्यन्त दुःखी मन से समय काटने लगे।

एक दिन उनके मित्र श्रीनन्द महाराज अपनी पत्नी श्रीमती यशोदा देवी व शिशु गोपाल के साथ श्रीवृषभानु राज की पुत्री को देखने आये। 

श्रीवृषभानु जी और माता किर्तिदा ने उनका खूब स्वागत किया। बातों ही बातों में श्रीवृषभानु जी ने अपना दुःख अपने मित्र को बताया। अभी बातचीत चल ही रही थी कि नन्द-महाराज जी के पुत्र गोपाल रेंगते-रेंगते उस कमरे में गये जहाँ श्रीमती राधाजी लेटी हुईं थीं। जैसे ही शिशु गोपाल श्रीमती राधाजी की शैय्या का सहारा लेकर
खड़े हुए, और उनका चेहरा श्रीमती राधाजी के सामने आया, तभी बालिका राधा ने अपनी आँखें खोल दीं। 

श्रीमती राधा जी का यह संकल्प था कि वे आँखें खोलते ही पहले श्रीकृष्ण को ही देखेंगी। इसलिये श्रीकृष्ण के आने के साथ-साथ ही राधारानी ने नेत्र खोल दिये।

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