बात उन दिनों की है जब आप श्रीधाम वृन्दावन में रहते थे।
आप भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु के आदेशों का पालन करते हुये रह रहे थे, किन्तु एक चिन्ता आपको सताती रहती थी। वो यह कि श्रीव्रजेन्द्र नन्दन श्रीगोविन्द जी के श्रीविग्रह (श्रीमूर्ति) को कैसे प्रकाशित किया जाये, कहाँ खोजा जाये?
इसी चिन्ता में आप श्रीवृज मण्डल में गाँव-गाँव, वन-वन में फिरते हुये श्रीगोविन्द देव जी को ढूंढते रहते थे।
योग पीठ में, भगवान की मौजूदगी, शास्त्रों में लिखी है। आप ने जब वृज वासियों के घर-घर में खोजने पर भी कहीं श्रीगोविन्द देव जी के दर्शन न किये, तो धैर्य खोकर एक दिन आप यमुना के किनारे श्रीकृष्ण-विरह से व्यकुल होकर जा बैठे।
उसी समय एक वृजवासी आपके पास आया। उस वृजवासी ने बहुत ही मीठी वाणी में आपके दुःख का कारण पूछा।
श्रील रूप गोस्वामी जी ने उस वृज-वासी के रूप और शब्दों से मोहित होकर उन्हें सारी बात बता दी।
वृजवासी ने आपको सान्त्वना देते हुये कहा - चिन्ता का तो कोई कारण ही नहीं है। वृन्दावन में गोमाटीला नामक योग-पीठ है। वहाँ श्रीगोविन्द देव जी गुप्त रूप से रहते हैं। एक सुलक्षणा गाय रोज़ाना वहाँ आकर दूध देती है।
इतना कहकर वो वृजवासी अन्तर्धान हो गया।
श्रीकृष्ण आये थे, मैं पहचान नहीं पाया - यह सोच कर आप मूर्च्छित हो गये।
वृजवासियों में बड़ी खुशी से गोमा टीले कि खुदाई की, और वहाँ से करोड़ों काम-देवों को मोहित करने वाले व्रजेन्द्र-नन्दन श्रीगोविन्द देव जी का प्राकट्य हुआ।
इस समय ये विग्रह श्रीगोविन्द देव मन्दिर, जयपुर में हैंं।
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