शुक्रवार, 31 जुलाई 2015

क्या कोई जन्म लेते ही तपस्या के लिये जा सकता है?

एक वेद को जिन्होंने 100 शाखाओं वाले चार भागों में विभाजित किया थावे वेद-व्यास के नाम से जाने जाते हैं।

आप साधारणतया माठरद्वैपायन, पाराशर्यकानीनबादरायणव्यास, कृष्णद्वैपायनसत्यभारतपाराशरीसत्यव्रतसत्यवती-सुत एवं सत्यारत के नाम से भी जाने जाते हैं।

आपके जन्म (आविर्भाव) की कथा इस प्रकार से है - एक बार पराशर मुनि तीर्थयात्रा पर थे। चलते-चलते आप यमुनाजी के किनार पहुँचे। यमुना को पार करने के लिए उन्होंने एक नाविक से सहायता माँगी। व्यस्त होने के कारण उसने अपनी कन्या मत्स्यगंधा को यमुना पार कराने के लिये कहा।

पिता के आदेशानुसार मत्स्यगंधा नौका चलाते हुये जब यमुनाजी पार कराने लगी दैववश पराशर मुनि मत्स्यागंधा की पितृ-भक्ति देख प्रसन्न हो गये। मत्स्यगंधा के शरीर से मछली कि गंध आती थी, जिसके कारण उसका नाम मत्स्यगंधा था। पराशर मुनि ने कृपा करके उसको सुन्दर बदन वाली कर दिया और उसके शरीर से कस्तूरी की गन्ध आने लगी। मत्स्यगंधा अब कस्तूरी की गंध वाली हो गयी। मत्स्यगंधा की इच्छा से पराशर मुनि ने उसको पुत्र उत्पत्ति का वरदान दिया व यह भी कहा की पुत्र उत्पन्न होने पर भी वो कन्या की रहेगी और उसका पुत्र पराशर मुनि के समान ही तेजस्वी व गुणी होगा। और उसके शरीर की यह सुगन्ध सदा बनी रहेगी। 
शुभ-मुहूर्त में मत्स्यगंधा (सत्यवती) के यहाँ श्रीकृष्णद्वैपायन वेदव्यास मुनि आविर्भूत हुये।

जन्म ग्रहण करते ही वेद-व्यास मुनि ने अपनी माता को घर जाने के लिये अनुरोध किया और कहा कि जब भी वे आपको स्मरण करेंगी, आप तुरन्त उपस्थित हो जायेंगे। जन्म ग्रहण करते ही श्रीवेद-व्यास मुनि तपस्या के लिये चले गये थे।

क्या कोई साधारण बालक जन्म लेने के साथ-साथ ही तपस्या के लिये जा सकता है या ऐसी कोई बात माता से कह सकता है? 

श्रीकृष्ण्द्वैपायन वेदव्यास मुनि जी का पावन चरित्र श्रीमद् भागवत्-शास्त्र, विष्णु-पुराण एवं महाभारत, इत्यादि विभिन्न शास्त्रों में वर्णित हुआ है।

दशराज की कन्या सत्यवती एवं पराशर जी को अवलम्बन करके वेदों के प्रवर्तक श्रीकृष्णद्वैपायन वेदव्यास जी अवतीर्ण हुए। आप भगवान श्रीहरि के 17वें अवतार हैं। 

श्रीहरि की इच्छा से शुभ मुहुर्त में कृष्ण-द्वीप में श्रीवेद-व्यास मुनि का आविर्भाव हुआ। ऐसा कहा जाता है कि आपका जन्म ही ॠषि के वेष में हुआ था। 

द्वीप में उत्पन्न होने के कारण आपका नाम द्वैपायन हुआ।

आप ही ने वेदों के अंत - वेदान्त की रचना की। आप ही ने वेदान्त के भाष्य के रूप में श्रीभागवत लिखा।
यह श्रीमद् भागवत् ही ब्रह्म-सूत्र का अर्थ है। इसी में महाभारत का तात्पर्य निर्णय किया गया है।  यह भागवत -- गायत्री का भाष्य भी है एवं ये समस्त वेदों के तात्पर्य द्वारा पुष्ट है। 

आज गुरु-पूर्णिमा है।   

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