गुरुवार, 2 जुलाई 2015

सदा हरिनाम भी करें और संसार के काम भी करें। यह दोनों साथ साथ कैसे हो सकते हैं?

हमें संसार का कर्म और हरिनाम क्यों करना है? यह दोनों एक साथ हो सकते हैं या नहीं, इसको जानने से पहले हमें यह पता होना चाहिये की संसार के कर्म और भगवान का भजन होता क्या है?

भगवान का भजन का अर्थ होता है भगवान से प्यार करना।

साधन भजन का मतलब होता है भगवान से प्रेम करना अथवा प्रेम प्राप्त करने की मन्ज़िल की ओर चलना।

जबकि श्रीगीताजी के अनुसार कर्म का मतलब होता है -- शास्त्र की आज्ञा के मुताबिक अपनी दिनचर्या को चलाना। दुनियावी भाषा में कर्म का मतलब होता है, संसार में रहकर, अपने परिवार, अपने समाज़, अपने देश, इत्यादि के साथ अच्छा व्यवहार के साथ रहना।

या यूँ समझें एक संसारिक कार्य है और दूसरा आत्मा से सम्बन्धित कार्य,
और हमको दोनो ही करने होंगे, एक साथ। 

इस कला को सिखाने के लिये शरणागति के जो 6 लक्षण हैं, वो अच्छी तरह समझ में आने से हम दोनों कार्यों को एक साथ बड़िया कर सकते हैं। 

सभी व्यक्तियों के लिये संसारिक कार्य और भक्ति दोनों ही जरूरी हैं, बलकि हम तो यह कहेंगे की एक के बिना दूसरा अधूरा है। 

शरणागति के 6 लक्षण हैं - दीनता, आत्मनिवेदन, भगवान को अपने पालन-कर्ता के रूप में वरण करना, श्रीकृष्ण मेरी अवश्य रक्षा करेंगे, ऐसा दृढ़ विश्वास रखना एवं भगवद्-भक्ति के जो अनुकूल कार्य हैं उन्हें स्वीकार करना तथा भक्ति के प्रतिकूल भावों को छोड़ना।



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