शुक्रवार, 13 मार्च 2015

भगवान ने उनके मृत पुत्र को जीवित कर दिया

एक दिन भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु अपने भक्तों के साथ श्रीवास पण्डित के घर में कृष्ण-नाम संकीर्तन कर रहे थे। 

ऐसे समय श्रीवास पण्डित का इकलौता पुत्र गुज़र गया। पुत्र के वियोग में घर की स्त्रियाँ रोने  लगीं। किन्तु श्रीवास पण्डित ने उन्हें रोने से मना कर दिया ताकि श्रीमहाप्रभु के संकीर्तन विलास में किसी प्रकार की बाधा न पहुँचे।

काफी रात में संकीर्तन करने के बाद श्रीमहाप्रभु जी कहने लगे - आज मेरे चित्त में प्रसन्नता नहीं है। क्या पण्डित के घर में कुछ हुआ है?


श्रीवास पण्डित ने कहा - हे प्रभो! जिसके घर में आपका सुप्रसन्न श्रीमुख हो, उसे भला क्या दु:ख?

बाद में भक्तों ने कहा - प्रभो! श्रीवास का एकमात्र पुत्र गुज़र गया। आपके कीर्तन में बाधा होगी इसलिये श्रीवास पण्डितजी ने बताने के लिये मना किया था।

इस प्रकार के प्रेमिक भक्तों को छोड़ कर मैं कहाँ जाऊँगा - ऐसा कह श्रीमहाप्रभु अपने स्थान से उठे और मृत बालक दी देह के पास आकर बैठ गये।

बालक को उन्होंने पूछा - ओहे बालक! तुमने श्रीवास जैसे भक्त के घर को
छोड़ कर अन्यत्र जाने की इच्छा क्यों की?

बालक उठ बैठा और बोला - जितने दिन श्रीवासजी के घर में रहने का समय था उतने दिन यहाँ गुज़ारे, अब आप की इच्छा के अनुसार मैं अन्यत्र जा रहा हूँ। मैं आपका नित्य अनुगत अस्वतन्त्र जीव हूँ। आपकी इच्छा के विरुद्ध मैं कुछ नहीं कर सकता। आप मुझ पर ऐसी कृपा कीजिए, जिससे मुझे कभी भी व किसी भी अवस्था में आपके पाद-पद्मों की विस्मृति न हो।
बालक के मुख से इस प्रकार के ज्ञानगर्भित वाक्य सुनकर श्रीवास पण्डितजी के परिवार को दिव्य ज्ञान हुआ और उनका शोक दूर हो गया।

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