द्वारा: श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज जी ।
श्रीमद्भागवत् में चित्त को ही जीव के बन्धन का व मुक्ति का कारण बतलाया गया है। इस चित्त में ही श्रीकृष्ण को अधिष्ठित करना होगा। यदि कोई पूछे कि ये कैसे सम्भव होगा तो इसका जवाब यही है कि देखो सारी जिन्दगी हमने संसारिक विषयों की बातें सुनीं-कहीं व चिन्तन कीं; इसलिये हमारे चित्त में सारे सांसारिक विषय आ गये हैं। अतः अब शुद्ध भक्तों के मुख से भगवान की कथा सुनो, जो सुना, उसे दूसरों के आगे कहो व चिन्तन करो। बस, ऐसा करने से भगवान तुम्हारे चित्त में अधिष्ठित हो जायेंगे।
कारण, जिस विषय में हम बोलते रहते हैं, या सुनते रहते हैं, वही विषय
हमारे चित्त में बैठ जाता है। जैसे आप किसी कुत्ते या बिल्ली अथवा किसी व्यक्ति के बारे में सुनते रहो, बोलते रहो तो आप देखेंगे कि कुछ समय पश्चात वही कुत्ता, बिल्ली या व्यक्ति आपके चित्त में अधिष्ठित हो जायेगा। इसी प्रकार यदि किसी को अपने दिल में भगवान धारण करने की इच्छा है, भगवान को प्राप्त करने की इच्छा है तो उसे चाहिये कि वह भगवान के बारे में सुने, जब भी किसी से मिले तो भगवान के बारे में ही कहे तथा भगवान के बारे में ही चिन्तन करे । ऐसा करने से तुम्हारा दिल भगवान में चला जायेगा।
अतः भगवान के नाम, रूप, गुण, लीला व परिकर की कथा श्रवण, कीर्तन व स्मरण -- ये तीनों भक्ति अंग ही, भगवद्-प्राप्ति के लिये श्रेष्ठ साधन हैं।
श्रीमद्भागवत् में चित्त को ही जीव के बन्धन का व मुक्ति का कारण बतलाया गया है। इस चित्त में ही श्रीकृष्ण को अधिष्ठित करना होगा। यदि कोई पूछे कि ये कैसे सम्भव होगा तो इसका जवाब यही है कि देखो सारी जिन्दगी हमने संसारिक विषयों की बातें सुनीं-कहीं व चिन्तन कीं; इसलिये हमारे चित्त में सारे सांसारिक विषय आ गये हैं। अतः अब शुद्ध भक्तों के मुख से भगवान की कथा सुनो, जो सुना, उसे दूसरों के आगे कहो व चिन्तन करो। बस, ऐसा करने से भगवान तुम्हारे चित्त में अधिष्ठित हो जायेंगे।
कारण, जिस विषय में हम बोलते रहते हैं, या सुनते रहते हैं, वही विषय
हमारे चित्त में बैठ जाता है। जैसे आप किसी कुत्ते या बिल्ली अथवा किसी व्यक्ति के बारे में सुनते रहो, बोलते रहो तो आप देखेंगे कि कुछ समय पश्चात वही कुत्ता, बिल्ली या व्यक्ति आपके चित्त में अधिष्ठित हो जायेगा। इसी प्रकार यदि किसी को अपने दिल में भगवान धारण करने की इच्छा है, भगवान को प्राप्त करने की इच्छा है तो उसे चाहिये कि वह भगवान के बारे में सुने, जब भी किसी से मिले तो भगवान के बारे में ही कहे तथा भगवान के बारे में ही चिन्तन करे । ऐसा करने से तुम्हारा दिल भगवान में चला जायेगा।
अतः भगवान के नाम, रूप, गुण, लीला व परिकर की कथा श्रवण, कीर्तन व स्मरण -- ये तीनों भक्ति अंग ही, भगवद्-प्राप्ति के लिये श्रेष्ठ साधन हैं।

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