शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

दिल्ली ,दामिनी काण्ड और उसका आध्यात्मिक समाधान

रविवार , १६ दिसम्बर २०१२ की रात को जो अत्यंत निंदनीय दामिनी काण्ड हुआ , इसने हमारे समाज के सभ्य लोगों के रोंगटे खड़े कर दिये हैं ।
 
दिल्ली में हुए एक जघन्य गैंग रेप से पूरा भारत वर्ष उद्वेलित है तथा देश में एक महाबहस छिड. गई है कि बलात्कार की इस बढ़ती प्रवृति को आखिर रोका जाए तो कैसे ? कई लोग बलात्कार के लिए देश के कमजोर दंडात्मक कानून को दोषी ठहरा रहे हैं तो कई लोगों की दृष्टि में पुलिस की निष्क्रियता इसका प्रमुख कारण है । कोई कहता कि बलात्कार के दोषियों को फाँसी पर लटकाया जाना चाहिए तो किसी की राय है की बलात्कारियों को नपुंसक बना दिया जाना चाहिए । कोई साफ्ट वेयर के माध्यम से मुसीबत के समय पीड़िता की मदद पहुँचाने के तकनीकी रास्ते खोज रहा है तो कई पढ़ी - लिखी महिलाएं  अन्य महिलाओं को  अपने साथ में चाकू एवं लाल मिर्च का पाउडर लेकर चलने की सलाह दे रही हैं । निस्संदेह आज पूरा भारत देश इस महाबहस में मशगूल है । देश मे कुछ लोग ऐसे भी है , जो कहते हैं कि महिलायों को अत्याधुनिक बनाने की होड़ से बचना चाहिए तथा पाश्चात्य देशों का अन्धानुकरण नहीं करना चाहिए ।
इसके विपरीत कुछ लोग उनके इस नजरिए को रूढ़िवादी, नारी -स्वतंत्रता एवं समानता का विरोधी करार दे रहे हैं । अपनी अपनी सोच के अनुसार हरेक के सुझाव भी अपने अपने हैं
 
दिल्ली के इस काण्ड को यदि आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाये तो चार्टेड बस में बैठे छ: के छ: व्यक्ति कामना - वासना व मदिरा पान के घोर अंधेपन की घृणित स्थिति मे थे , जहाँ पहुंचकर उन्हें न समाज के बहन - बच्चियों की इज्ज़त की चिंता थी , न ही उनके माँ -बाप या परिवार वालों पर क्या गुजरेगी , उसकी सोच थी और न ही किसी सज़ा का ड़र या पाप व महापाप का चिंतन था ।
 
ये ठीक है कि भारतीय दंड संहिता की धारा ३७५, ३७६ ए , ३७६ बी ,३७६ सी ,३७६ डी को नए सिरे से परिभाषित किया जा रहा है ।
 

बलात्कारियों को कठोर से कठोर दंड देने के बारे में सोचा जा रहा है । निश्चित ही अगर ऐसा हो जाता है तो समाज में कुछ तो सुधार होगा परन्तु निश्चित व कारगर उपाय है - श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान् श्री कृष्ण का ये सन्देश कि ' मामनुस्मर युद्ध च ' (गीता ) अथवा भगवान् श्री चैतन्य महाप्रभु जी का यह उपदेश - कीर्तनीय: सदा हरि: (शिक्षाष्टकम ३) -- जिनमें भगवान् ने हमें यह उपदेश दिया है कि दुनियां में आये हैं तो दुनियां के कार्य तो करने ही होंगे । हमें उन कार्यो को शास्त्र के अनुसार, भगवान् व उनके भक्तों की महिमा के श्रवण - कीर्तन व  स्मरण के साथ व अपने आप को पाप -प्रवृतियों से हटाकर - दुसरो को सामान देते हुए करना होगा । मैं शरीर नहीं , बल्कि आत्मा हूँ व भगवान श्री हरि का नित्य सेवक हूँ - इस भावना से कोई भी कार्य ऐसा न करें जिससे आपके प्रभु अप्रसन्न हों ।
 

भगवान को मानना व भगवान का भजन करना हमारे पारमार्थिक जीवन के लिए कल्याणकारी होने के साथ -साथ हमारा पारिवारिक व सामाजिक कल्याण भी करता है क्योंकि वास्तव में भगवान को मानने वाला अपने बड़ों का , बुजुर्गों का अपमान नहीं कर सकता । भगवान का भजन करने वाला शराब जैसी नशीली वस्तुओं का सेवन नहीं कर सकता । दामिनी काण्ड तो बहुत दूर की बात है ,सही रूप में भगवान को मानने वाला किसी स्त्री का अपमान भी नहीं कर सकता । नोएडा के मोनिंदर सिंह पण्डेर तथा उसके साथी सुरेंदर कोहली तो छोटे -छोटे बच्चों को जान से मारते ही नहीं बल्कि उनका मांस भी खा जाते थे |  इस प्रकार के मामलों में भगवान के शरणागत व्यक्ति तो बच्चो को स्नेह दिए बिना रह नहीं सकता । वैसे भी सिद्धांत है कि भगवान को सच्चा प्यार करने वाला भगवान को बनाये सभी प्राणियों से प्यार करता है । भगवद -
शरणागति के बगैर भगवान का भजन मात्र दिखावा या भ्रम है । इधर शरणागति के जो नियम हैं ,उसमें पहला नियम हैं - " आनुकूल्स्य  संकल्प : प्रतिकूलस्य विवर्जनम ।" अर्थात भगवान के शरणागत व्यक्ति को भगवान की प्रसन्नता के अनुकूल कार्यों को करने का निरंतर संकल्प लेते रहना पड़ता है और भगवान के प्रतिकूल विचारों को छोड़ना पड़ता है |  इस कार्य में जितनी मात्रा में वह सफल हो पाता है भगवान की नजरों मे वह उतना बड़ा भक्त कहलाता है । भगवान को मानने वाला अपने परिवार व समाज के लिए तो अच्छा होता ही है ,साथ ही साथ वह पशु-पक्षी आदि समाज के लिए भी अच्छा होता है ,क्योंकि वह  सभी प्राणियों को अपने प्रभु का ही सेवक जानता है । ऐसे में वह अपने स्वाद के लिए मुर्गे व बकरे आदि प्राणियों को कैसे मार सकता है ।
 
अत: सामाजिक नींव को मजबूत बनाने के लिए व सुखी समाज की बुनियाद को रखने के लिए अपने आप को व अपनों को अच्छे भक्तों की संगति में रखें, अपने आप को जानें, संसार को व सांसारिक लोगों को पहचानें व हर प्रकार से अपने नित्य माता -पिता, सच्चे मित्र व अपने प्रभु के चरणों मे अपने आपको समर्पित करते हुए श्रीमद भगवद गीता जैसे ग्रन्थों को अपने जीवन की गाइड बुक व भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु जी के आदर्शों को अपना मील का पत्थर जानकर अपना और अपनों का जीवन सफल करें तथा मनुष्य जीवन  के वास्तविक ध्येय को समझें व उसे प्राप्त करें | 
 
एक और बात 

 
मुनीरका से महिपाल पुर तक चलती बस में वहशी दरिंदों की शिकार हुई पीड़िता और उसके मित्र को घायल करके नंगा करके सड़क किनारे फेंक दिया जाता है । कड़ाके की ठंड मे बिना कपड़ों के तड़पते जोड़े को देखने के लिए लोगों का हुजूम तो जमा हो गया ,लेकिन इनमें से किसी ने दर्द से कराहते इन मासूमों को तन ढकने के लिए कपड़े देने की जहमत नहीं उठाई ।
 
पुलिस और व्यवस्था पर सवालिया निशान लगाने वाली जनता के सामाजिक उत्तरदायित्व का बोध खुद -ब -खुद कटघरे में आ खड़ा होता है । घटना के बारे में पुलिस से मिली जानकारी के मुताबिक मौके पर जब
पी. सी. आर वैन पहुंची , उस समय घायल जोड़े को निहारते लगभग ५० से अधिक लोग मौजूद थे और से महज तमाशबीन बने खड़े थे | हद तो तब हो गई, जब इन्हें पुलिस वाहन तक पहुंचाने के लिए लोगो से मदद का अनुरोध किया गया तो एक भी व्यक्ति इन्हें सहारा देने के लिए आगे नहीं बढ़ा । खून से लथपथ दोनों घायलों की बेचारगी और बेबसी किसी को भी कदम बढ़ाने के लिए प्रेरित नहीं कर सकी । गाड़ियों से गुजरते लोग तमाशा देख कर आगे बढ़ते रहे । अंत मे पी. सी आर के तीन जवानों ने उन्हें मामूली कपड़े देकर वैन तक पहुँचाया ।भगवान जगन्नाथ अर्थात सारे जगत के मालिक भगवान हमारी इस उपेक्षा से प्रसन्न नहीं होगें । ऐसे समय पर हमें तन मन धन से पीड़ितों की सहायता करनी चाहिए भगवान को मानने वाले सारी दुनियां के लोग उसके परिवार के सदस्य हैं । हमारे ही परिवार का सदस्य इतनी असहाय अवस्था मे तड़पे व सहायता के लिए तरसे और हम तमाशबीन बने रहें या कौन झमेले में पड़े, यह सोचकर आगे बढ़ जायें , ऐसा सांसारिक व आध्यात्मिक दृष्टि से बिल्कुल अच्छा नहीं है ।
 
सबकी जानकारी के लिए हम बता दें कि हमारे देश की सुप्रीम कोर्ट ने एक दिशा निर्देश दिया है कि यदि कोई व्यक्ति किसी एक्सीडेंट या दामिनी काण्ड जैसे हाल में पीड़ित को किसी प्राइवेट डॉक्टर या हस्पताल में पहुंचाता है तो कोई डॉक्टर या पुलिस अथवा कोर्ट उसे तरह -तरह के प्रश्न करके परेशान नहीं कर सकते । उसकी इच्छा पर निर्भर है कि वह पीड़ित  के बारे में कुछ बताये या न बताये । साथ ही कोर्ट ने यह भी निर्देश दिए हैं कि ऐसे आकस्मिक अवसर पर डॉक्टर पहले पीड़ित का इलाज प्रारम्भ करेगा और बाद मे पुलिस को सूचित करेगा ।
 
'जीयो और जीनो दो 'के सूत्र के अनुसार अन्य प्राणियों को कष्ट न दें और ऐसा करने वाले को कठोर दंड का प्रावधान तथा भगवद -भक्ति व भक्ति की सर्वोतम साधना -श्रीहरिनाम संकीर्तन का अधिक से अधिक आचरण के साथ प्रचार ही दिल्ली के दामिनी काण्ड ,व नोयडा के निठारी काण्ड जैसी राक्षस प्रवृतियो का सही व कारगर उपाय है |  
 
 
-- द्वारा भक्ति विचार विष्णु महाराज

 

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