कंस को जब ये पता लग गया कि उसे मारने वाला पैदा हो गया है तो उसने अपने मंत्रियों से मंत्रणा की व पूतना को बुला कर कहा कि जितने भी दस दिन तक के बच्चे हैं उन्हें दूध पिला-पिला कर मारो।
पूतना बच्चों का वध करने लगी।
उधर श्रीकृष्ण में सभी ज्ञानों का प्रकाश रहता है किन्तु वृज के भक्तों के प्रेम का रसास्वादन करने के लिए कुछ नहीं करते थे। उनके सारे कार्य उनकी शक्ति योगमाया द्वारा ही सम्पादित होते थे।
भगवान की इच्छा को जानकर उनकी शक्ति ने अपना विस्तार किया तो पूतना का ध्यान वृज की ओर गया। पूतना उड़ना जानती थी। बड़ी भयंकर दिखती थी, बड़ा मुँह, विशाल दाढ़ें, बड़ी-बड़ी आँख़ें, तीखे दांत, आदि। श्रीकृष्ण की इच्छा से वो सीधा श्रीनन्द-भवन ही आई, वृज में कहीं और नहीं जा पाई।
वैभव से भरे श्रीनन्द भवन में पूतना जब आई तो उसमे जाने से पहले उसने बहुत सुन्दर वेष बनाया। सुन्दर आँखें, सुन्दर शरीर्। उसे देखकर पहरेदारों ने रोका नहीं, ये सोचकर की कोई देवी चली आ रही है हमारे लाला को मिलने के लिए। जबकि पूतना यह सोच रही थी कि कुछ ही देर का काम है, अभी दूध पिलाऊँगी और छुट्टी।
उसने जब श्रीश्यामसुन्दर को दूध पिलाना शुरु किया तो श्रीकृष्ण दूध के साथ-साथ उसके प्राण भी पीने लगे।
कुछ ही पलों में पूतना को पता लग गया कि ये केवल दूध नहीं पी रहा। वो हाथ-पैर पटकने लगी, चिल्लाने लगी। श्रीकृष्ण मन ही मन हँसे ये सोचकर कि वैसे तो मैं किसी को पकड़ता नहीं, अगर पकड़ लूँ तो छोड़ना जानता ही नहीं। अब कैसे छोड़ दूँ तुझे?
पूतना अपने असली रूप में आ गई और बाहर की ओर भागी। बहुत दूर नहीं जा पाई, और गौशाला में ही ढेर हो गई।
श्रीकृष्ण का स्पर्श मिलते ही वो पाप-रहित हो गई थी।
इतने दयालु हैं श्रीकृष्ण कि पूतना ने उन्हें दूध पिलाया था इसलिए उन्होंने पूतना को गोलोक में धाई माता कि गति दी व अपना पार्षद बनाया।
उनके स्पर्श से पूतना पाप-रहित हो गई थी, इसलिए जब गोपो ने उसें जलाया तो उसके शरीर से अद्भुत सुगन्ध आने लगी थी।
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