एक दिन नन्हें कृष्ण, श्रीनन्द जी के पास आये व बोले- बाबा! बाबा! मैं भी दूध दुहुँगा। ये देखो, मेरे पास लोटा भी है।
श्रीनन्द राय जी हँस पड़े व बोले- अभी तो तू छोटा है, दूध तो बड़े दुहते हैं।
बालकृष्ण- पर मैया तो कहती है कि तू बड़ा हो गया है?
श्रीनन्द राय जी हँस पड़े व बोले- चल, तेरी मैया से ही पूछ लेते हैं।
श्रीकृष्ण जानते हैं कि उनके माता-पिता का उनके प्रति इतना ज्यादा वात्सल्य है कि उनके लिए वे हमेशा छोटे से बच्चे ही रहेंगे, अतः जल्दी से मानेंगे नहीं।लेकिन यह भी जानते हैं कि उनके शान्त रस के भक्त जैसे गाय, बछड़े, बैल आदि को भी आनन्द देना है, वे भी मेरे दर्शनों की लालसा में यहाँ पर आये हुए हैं।
इसलिए एक दिन चुप-चाप छुपते-छुपाते अपनी सोने की लुटिका (छोटा सा लोटा उठाये), नन्हें कृष्ण पहुँच गये गोशाला में।
श्रीनन्द राय जी व अन्य गोप गाय का दूध दुह रहे थे।
श्रीकृष्ण ने जैसे ही गोशाला में प्रवेश किया, सारी गाय अचानक स्थिर हो गयीं। सबका ध्यान गोशाला के द्वार की ओर था। श्रीनन्द राय जी ने अनुभव किया कि सारी गाय, एकदम शान्त हो गयी हैं, सबका ध्यान एक ही ओर है। वे समझ गये कि मेरा लाला गोशाला में आ गया है।
खड़े हुए और देखा कि वो सामने से उनका लाला चोरी-चोरी, धीरे-धीरे चला आ रहा है। ऐसा धीरे कि पायल की आवाज़ भी न हो।
सारी गाय श्रीकृष्ण के पास जाने के लिए लालायित हो उठीं।
श्रीकृष्ण ने गायों को चंचल सा देखा तो शीघ्रता से उनके पास जा पहुँचे। उन्हें पुचकारने लगे, हाथों से सहलाने लगे आदि।
तभी एक चमत्कार हुआ, श्रीकृष्ण के दर्शन, स्पर्श से गौवें इतनी हर्षित हो गईं थीं कि उनके थनों से दूध अपने आप ही बहने लगा।
इतना हर्ष था गौवों को कि बिना दुहे ही दूध बह रहा था।
उस दिन इतना दूध बहा, इतना दूध झरा कि दोपहर तक गोप मिलकर दूध इकट्ठा करते रहे किन्तु दूध सिमट न सका।
श्रीनन्द राय जी भी देख रहे थे कि क्या हो रहा है?
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