अगर बहुत प्रयास करने पर भजन नहीं हो पा रहा है तो उसके पीछे क्या कारण हो सकता है।
सीधी सी बात है कि आत्मा की वृत्ति सो रही है। आत्मा की वृत्ति जागृत हो जाये तो अपने आप ही श्रीकृष्ण जी के लिए तड़प पैदा हो जायेगी।
आत्मा की वृत्ति का जागरण होता है, वैष्णवों के साथ श्रीहरिनाम संकीर्तन करने से।
आत्मा की वृत्ति का जागरण होता है, वैष्णवों के साथ बैठ कर गुरू जी की, वैष्णवों की, भगवान की महिमा श्रवण-कीर्तन करने से।
वैसे ये अकेले नहीं हो सकता। वैष्णवों के साथ रहने से ही हो सकता है।
हमारे मठ के महात्मा एक उदाहरण देते थे इस बात को समझाने के लिए।
वे बताते थे कि जब ये दियासिलाई, माचिस नहीं थी, तब लोग अपने चूल्हों में आग सरंक्षित रखते थे। (आज भी दूर दराज़ के गाँव में ऐसा देखा जा सकता है।) जब चूल्हा जलाना है तब उसमें कागज़ अथवा पत्तों को फूँक मार के आग को जला लेते थे। सूखी लकड़ी डाल के, उसे जलाते और फिर खाना आदि बना लेते। कभी किसी कारणवश चूल्हा बुझ जाए तो उसमें जितने मर्ज़ी सूखे पत्ते, लकड़ी डालो, आग नहीं जलती थी। ऐसी स्थिती में वो पता करते थे कि किस के यहाँ चूल्हा जल रहा है। फिर उस घर से आग लेकर अपना चूल्हा जला लेते थे।
ठीक इसी प्रकार कई-कई जन्मों से भगवान के विमुख रहने के कारण, इस हृदय में कोई कृष्ण विरह अग्नि नहीं जल पा रही है। भगवान के लिए कोई तड़प नहीं है, हमारा चूल्हा बुझ चुका है। इसमें जितनी मर्ज़ी साधना की फूँक मारते रहो, जलेगा ही नहीं।
तो क्या करना होगा?
जिन वैष्णवों के हृदय में श्रीकृष्ण प्रेमाग्नि है, जिनके हृदय में श्रीकृष्ण विरहाग्नि प्रज्वलित है, ऐसे वैष्णवों के हृदय से श्रीकृष्ण विरहाग्नि लेकर, अपने हृदय की विरहाग्नि को प्रज्वलित करना पड़ेगा।
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