सूरदास जी ने श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं के बारे में बहुत कुछ लिखा है।
एक बार लिखते हैं कि…………………
कन्हैया-- मैया! मैया मोरी! मैं नहीं माखन खाएओ।
(श्रीकृष्ण माखन खाते हुए पकड़े गये हैं। और अब मैया को मना रहे हैं। वैसे तो सारा संसार ही भगवान का है अतः वे कोई वस्तु कैसे चुरा सकते हैं किन्तु लीला है, भक्तों के प्रेम का रसास्वादन करने के लिए। जैसे भगवान तो सर्वज्ञ हैं किन्तु लीला में ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे उन्हें मालूम ही नहीं है। सारी सृष्टि के एकमात्र स्वामी होते हुए भी चोरी की लीला कर रहे हैं। बालक की लीला कर रहे हैं।..............
.............एक और बात है कि जिस घर में नन्द-नन्दनन्दन श्रीकृष्ण रह रहे हैं, वहाँ पर श्रीनन्द महाराज जी के 9 लाख गायें हैं। जिस बालक के घर पर 9 लाख गायें हों वो भला क्यों माखन चुरायेगा?)
भगवान श्रीकृष्ण अपने भक्तों को सुख देने के लिए विभिन्न लीलायें करते हैं।
अतः कन्हैया ने कहा-- मैया! ओ मैया! मैंने माखन नहीं खाया। अब तू ही बता कि मैं चोरी कब करूँगा? सुबह-सुबह तो खाना खिला कर मुझे जंगल में भेज देती है, गो-चारण करने के लिए और सारा दिन तो मैं वहीं रहता हूँ। मैं भला चोरी कब करूँगा?
मैया को कोई जवाब न देते देख, श्रीकृष्ण ने दूसरी युक्ति बोली-- मैया, आप ही बताओ, मैं एक छोटा सा बालक हूँ। नन्हें_नन्हें मेरे हाथ, इतनी ऊपर छींका लगा हुआ है, उसमें घड़ा है जिसमें माखन रखा है, तो भला मैं कैसे माखन खा सकता हूँ? मैं छींके तक कैसे पहुँच सकता हूँ?
मैया ने कन्हैया के मुख पर लगे माखन की ओर इशारा करते हुए कहा-- अच्छा, लाला ये तेरे मुख पर जो माखन लगा है………।
कन्हैया (भोला सा मुख बना कर) -- मैया, ये तुम क्या बोल रही हो? मेरे सखा लोग बहुत होशियार हैं।मुझे फंसाने के लिए मेरे मुख पर ज़बरदस्ती माखन लगा दिया है। आप तो मैया हो, मन से कितनी भोली हो। इन्होंने मेरी शिकायत लगाई है। कहाँ इनकी बातों में आ जाती हो? तेरे को तो ऐसे ही घुमा देते हैं ग्वाल-बाल। इन्होंने मेरे मुख पर माखन लगा दिया और इन्होंने ही शिकायत लगा दी। अच्छा ये ले, गैया को चराने का डंडा, ये ले कम्बल जो तूने मुझे दिया था……इतने से माखन के लिए तू मुझे इतना सता रही है।
मैया हँस पड़ी व बोली-- लाला तू कैसी-कैसी बातें बोलता रहता है और मैया ने अपने लाला को गले से लगा लिया।
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