वृज मण्डल परिक्रमा चल रही थी। श्रील गुरू महाराज जी (श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी) ने अपने गुरू महाराज जी (श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज 'विष्णुपाद' जी) से पूछा। (शुद्ध भक्तों को वैसे तो सब कुछ पता होता है किन्तु हम लोगों के लिए, हमें ज्ञान देने के लिए, वे ऐसे प्रश्न करते हैं।) गुरू जी - हम लोग इतनी मेहनत करते हैं इस वृज मण्डल परिक्रमा के आयोजन के लिए, क्या इसका फायदा भी हो रहा है?
- क्यों?
- हम इतनी मेहनत से इतना इंतज़ाम करते हैं, लेकिन इसमें भाग लेने वाले ये लोग हरिकथा में नहीं बैठते, जिनके लिए हम इतना इंतज़ाम कर रहे हैं। इन्हें क्या फायदा हो रहा है?
- फायदा तो है। इन्हें वृज मण्डल परिक्रमा में आने का फायदा तो है किन्तु 100% नहीं। 5%।
- 5%?
- हाँ। दुनिया के कामों से अलग हटकर शुद्ध भक्तों के पास तो आया है वो। रोज हरिकथा नहीं सुनता किन्तु कभी तो सुनता है। वैसे भी सब लोग नहीं बैठते हैं हरिकथा में, लेकिन कुछ लोग तो बैठते हैं हरिकथा में । इसलिए जो वृज मण्डल परिक्रमा में आया है उसकी 5% भक्ति तो हो ही रही है।
यानि कि 5% भक्ति भी तभी हो रही है, क्योंकि वो शुद्ध भक्तों के पास बैठ कर हरिकथा सुन रहे हैं।
चाहे परिक्रमा करें, किन्तु अगर हम संकीर्तन नहीं करते, हरिकथा नहीं सुनते तो हमें परिक्रमा का पूरा फल नहीं मिलेगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें