भगवान श्रीकृष्ण की लीला में अनिरुद्ध ही श्रीचैतन्य महाप्रभु जी की लीला में, श्रील वक्रेश्वर पण्डित बन कर आये।
आप आषाढ़ मास की कृष्णापंचमी तिथि को आविर्भूत हुये। आप श्रीचैतन्य महाप्रभु को बहुत प्रिय थे। एक बार आपके नृत्य-कीर्तन में श्रीमहाप्रभु स्वयं कीर्तन करने लगे । आपको इतना अद्भुत भाव प्रकट हुआ कि आप लगातार तीन दिन तक एक ही भाव में नृत्य-कीर्तन करते रहे।
उसके बाद आपने श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के श्रीचरणों को पकड़ लिया व कहने लगे --'हे चन्द्रमुख प्रभु ! आप मुझे दस हज़ार गन्धर्व दे दें, ताकि वे गायें और मैं उनके सामने नृत्य करूँ, तभी मुझे सुख प्राप्त होगा।'
आपकी बात सुनकर श्रीमहाप्रभु जी बोले - 'तुम मेरे एक पंख हो, कहीं तुम्हारे जैसा दूसरा पंख मिल जाये तो मैं आकाश में उड़ जाऊँ ।'
श्रील वक्रेश्वर पण्डित जी की जय !!!!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें