मंगलवार, 11 मई 2021

श्रील गदाधर पण्डित की दीक्षा

श्रीमती राधिका ही श्रीचैतन्य महाप्रभु की लीलाओं में श्रीगदाधर पण्डित बन कर आईं।


श्रीचैतन्य महाप्रभु के एक भक्त थे श्रीपुण्डरीक विद्यानिधि । श्रीगदाधर पण्डित जी के पिता श्रीमाधव मिश्र, श्रीपुण्डरीक विद्यानिधि जी के मित्र थे।

श्रीगदाधर पण्डित जी ने श्रीपुण्डरीक विद्यानिधि जी के वास्तविक स्वरूप को न जानने की लीला की थी।

हुआ यूँ कि एक बार श्रीमुकुन्द दत्त जी, ने श्रीगदाधर पण्डित से एक अपूर्व वैष्णव के बारे में चर्चा की, व दोनों उन वैष्णव को मिलने चल दिये। श्रील गदाधर पण्डित बाल ब्रह्मचारी, अत्यन्त विषय-विरक्त और वैरागी थे। उन वैष्णव (श्रीपुण्डरीक विद्यानिधि जी)  के दर्शन करके, व उनकी दूध की झाग के समान बढ़िया सफेद चादर और कोमल बिस्तर, अत्यन्त मूल्यवान वस्त्रों में इत्र की गन्ध, इत्यादि देखकर  श्रील गदाधरजी को उनमें कोई भी वैष्णवता का लक्षण न दिखाई दिया जिससे आपके मन में उनके प्रति थोड़ी अश्रद्धा हो गई ।

श्रीमुकुन्द दत्त ये ताड़ गये।

उन्होंने श्रीमद् भागवत का श्लोक बोला --

अहो बकीं यं स्तनकालकूट जिघांसयापाययदप्य साध्वी।
लेभे गतिं धात्र्युचितां ततोऽन्यं कं वा दयालुं शरणं व्रजेम्॥ (भा 3/2/23)

पूतना लोकबालघ्नी राक्षसी रुधिराशना।
जिघांसयापि हरये स्तनं दत्त्वाप सद्गतिम्॥ (भा 10/6/35)

(अर्थात् - क्या आश्चर्य है। बकासुर की बहिन पूतना ने प्राणों के विनाश की इच्छा से प्रेरित होकर जिनको कालकूट मिश्रित स्तन-पान कराने पर भी धात्री (श्रीकृष्ण को अपने बालक की भान्ति दूध पिलाने वाली) कि गति प्राप्त की थी, उन परम दयालु श्रीकृष्ण के बिना मैं और किसके शरणापन्न होऊँ ?

खून पीने वाली व लोगों के बच्चों को मारने वाली राक्षसी पूतना ने श्रीकृष्ण को मारने की इच्छा से स्तन-पान करवाने पर भी गोलोक की प्राप्ति की थी।)
श्रीमुकुन्द दत्त के श्लोक उच्चारण करते ही, श्रीपुण्डरीक विद्यानिधि जी 'हा कृष्ण' कहते हुए कृष्ण-प्रेम के भाव में जमीन पर गिर गये व लोटपोट होने लगे। उनके पाँव की ठोकर से भोग-विलास की सारी सामग्री इधर-उधर जा गिरी। उनके शरीर में अलौकिक अष्ट-सात्विक विकार आने लगे। यह देखकर श्रील गदाधर पण्डित जी हैरान हो गये व अपने अपराध के लिये अनुतप्त हो उठे।

बाद में श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के निर्देशानुसार श्रीलगदाधर पण्डित जी ने
अपने अपराध मार्जन के लिये श्रीपुण्डरीक विद्यनिधि जी से मन्त्र दीक्षा ली थी।

श्रीपुण्डरीक विद्यानिधि जी, भगवान श्रीकृष्ण की लीला में, श्रीवृषभानु जी हैं जोकि श्रीमती राधा जी के पिताजी हैं। श्रीकृष्ण के दोनों पार्षदों अर्थात् श्रीविद्यानिधि प्रभु तथा श्रीगदाधर पण्डित जी का दीक्षा के बाद फिर वही पहले की लीला वाला गाढ़ प्रीति पूर्ण सम्बन्ध प्रर्दशित होने लगा।
वैष्णव का कौन सी लीला प्रकट करते हैं, इसे उनकी कृपा के बिना कोई भी समझने में समर्थ नहीं है।

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