रविवार, 24 जनवरी 2021

मन तो बहुत चंचल है, जी..... -7

श्रीमद् भगवद् गीता एक ऐसा ग्रन्थ है कि जिसमें हर प्रश्न का जवाब है। चाहे दुनियावी समस्या हो या आध्यात्मिक प्रश्न।

यह श्रीभगवान के मुख की वाणी है, जिनके पास हर समस्या का हल है।

श्रीकृष्ण साधन-भजन करने वालों को कुछ बताना चाहते हैं। वे कहना चाहते हैं कि अगर महान बनना है तो पूरी तरह से डूब कर कम करो। डूब कर काम करोगे तो ज़रूर कार्य में सिद्धि होगी। दुनिया में रहकर काम करना चाहते हो, परिवार को संभालना चाहते हो, समाज को नई दिशा दिखाना चाहते हो, अथवा भक्त बनना चाहते हो आदि.............तो भगवान श्रीगीता में इसका सूत्र देते हैं। 

वो यह कि हालांकि मन तो चंचल है, ये चाहे जहाँ जाये एक नट्खट बच्चे की तरह जो अभी पढ़ना नहीं चाहता, उसे आपको नियम में बाँधना होगा। जैसे माँ सख्ती से अपने बच्चे को पढ़ने के लिए बिठा देती है, कहीं इधर-उधर भटकने नहीं देती है, उसी प्रकार मन को सँभालना होगा। उसके गुलाम न होकर, उसके मालिक बना होगा।  मालिक होकर उसे दिशा देनी होगी। उसे सही राह पर ले आओ। तभी पढ़ाई होगी, काम होगा अथवा भजन होगा। भगवान ने यही तरीका बताया हम लोगों को। मन तो विमुख होगा ही, करोड़ों जन्म के संस्कार हैं हमारे मन में भगवान के विमुख रहने के लिए। वो ऐसे ही थोड़ा न, भजन करने लगेगा। 

भगवान कहते हैं कि इस मन को नियम में बाँधो। मेरा चाहे मन न माने किन्तु मैंने इतनी बार माला करनी हैं या इतने श्लोक पढ़ने ही हैं, आदि। संकल्प करो। जो संकल्प करो, उसे पूर्ण भी करो।

हरिनाम करते हुए, ध्यान कहीं और भी चला जाये, तो भी मन को वापिस हरिनाम में ले आओ।

मन को विभिन्न विषयों से वापिस लायें।

हमारे पूर्वाचार्य श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर जी बताते हैं कि पिछ्ले जन्मों के संस्कारों के दोषों के कारण अथवा रजो गुण के कारण हमारा मन चंचल हो जाये तो भी इसको संभालने का अभ्यास करते रहो।

भजन करते रहो। मन को नियम में रखो। इस पर शासन करो।

यही सूत्र है।


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