गोवर्धन - मानसी गंगा के उत्तरी तट पर चक्रेश्वर महादेव जी हैं।
श्रीमहादेव जी के मन्दिर के सामने एक प्राचीन नीम का पेड़ है। जिसके नीचे श्रील सनातन गोस्वामी जी की भजन कुटीर है।
चक्रतीर्थ में चाकलेश्वर महादेवजी की इच्छा से श्रील सनातन गोस्वामीजी रहते थे व भजन करते थे। वे प्रतिदिन श्रीगोवर्धन परिक्रमा करते थे।
श्रील सनातन गोस्वामी जी जब वृद्ध हो गये तब भी जैसे-तैसे गोवर्धन परिक्रमा करते थे। सनातन गोस्वामीजी का इतना परिश्रम व क्लान्ति देखकर गोपीनाथजी से रहा न गया और वे एक गोप बालक का वेश धारण करके श्रीसनातन गोस्वामी जी के पास आये।
उस समय सनातानजी परिक्रमा करके थके हुये थे। उनका शरीर पसीने से लथपथ था। गोपवेशधारी गोपीनाथजी अपने उत्तरीय वस्त्र से सनातन गोस्वामी जी पर हवा करने लगे।
गोपीनाथजी के हवा करने से सनातन जी के शरीर का सारा पसीना सूख गया और उनकी सारी थकान भी मिट गयी।
तभी छद्मवेशधारी गोप बालक गोवर्धन के ऊपर चढ़ गया और वहाँ से श्रीकृष्ण के चरण चिन्ह से अंकित गोवर्धन शिला ले आया तथा श्रील सनतान गोस्वामी को देते हुये बोला -'इस गोवर्धन शिला की परिक्रमा दे द्वारा आपकी गिरिराजजी की परिक्रमा हो जायेगी।'
गोप बालक के अन्तर्हित हो जाने पर सनातन गोस्वामीजी समझ गये कि वे अवश्य ही श्रीकृष्ण थे।
इसी चिन्तन में वे प्रफुल्लित हो उठे और प्रतिदिन परमोल्लास के साथ
गोवर्धन शिला की परिक्रमा करने लगे।
आजकल यह गोवर्धन शिला श्रीधाम वृन्दावन के श्रीराधादामोदर मन्दिर में विराजित है।
ऐसा वर्णन भी आता है कि जब ललितादि सखियों के साथ श्रीमती राधाजी जब मानसी गंगा के घाट पर आती थीं तब वृजेन्द्रनन्दन श्रीकृष्ण नाविक बनकर सभी को नाव से पार कराते थे।
ऐसा भी सुनने में आता है कि चकलेश्वर में पहले मच्छरों का बहुत उत्पात था। मच्छरों के काटने से हरिनाम करने में विघ्न होता था। अतः श्रील सनातन गोस्वामी जी ने यहाँ से कहीं और चले जाने के लिये सोचा ही था कि उसी रात अन्तर्यामी चाकलेश्वर महादेवजी ने स्वप्न में आकर श्रील सनातन गोस्वामीजी को अन्यत्र जाने से रोका और कहा-'यहाँ मच्छर नहीं रहेंगे।'
अति आश्चर्य की बात है कि चारों ओर मच्छरों का उत्पात रहने पर भी उसी समय उस स्थान पर (चाकलेश्वर में) एक भी मच्छर नहीं होता था।
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