श्रील गदाधर दास गोस्वामी -
आप श्रीमति राधा जी की कान्ति हैं। श्रील गदाधर पण्डित गोस्वामी जिस प्रकार श्रीमति
वृषभानुनन्दिनि रूपा हैं, उसी प्रकार श्रीगदाधर दास जी श्रीमति राधा जी की अंगशोभा हैं।
आप भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी की लीला में प्रकट हुए। गौड़ीय वैष्णव अभिधान में लिखा है कि आप जब नवद्वीप में रहते थे तो आप श्रीशची माता और श्रीविष्णुप्रिया देवी जी की देख-रेख करते थे। आपने अपनी अलौकिक शक्ति के प्रभाव से एक दुर्दान्त काज़ी से श्रीहरिनाम करवा कर उसका उद्धार कर दिया था।
श्रील गदाधर दास गोस्वामी जी की जय !
श्रील धनन्जय पण्डित -
आप श्रीमन् नित्यानन्द प्रभु के प्रिय सेवक थे व सदा श्रीकृष्ण प्रेम में मस्त रहते थे। आप श्रीकृष्ण लीला में श्रीबलदेव जी के प्रिय व द्वादश गोपालों में से एक - वसुदाम सखा हैं।
बाल्यकाल से ही आप श्री तुलसी जी को तीनों समय साष्टांग प्रणाम करते थे। आपने बहुर से दस्युओं और पाषण्डियों का उद्धार किया था।
श्रील धनन्जय पण्डित जी की जय !
श्रील निवासाचार्य प्रभु -
भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने आपके प्रकट होने से पहले ही कह दिया था कि 'श्रीनिवास' मेरा अभिन्न स्वरूप होकर सबका आनन्द वर्धन करेगा।
श्रीरूप आदि के द्वारा मैं भक्ति-शास्त्र प्रकाशित करवाऊँगा एवं श्रीनिवास द्वारा ग्रन्थरत्नों का वितरण करवाऊँगा।
श्रील निवासाचार्य प्रभु जी की जय !
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