शुक्रवार, 13 नवंबर 2020

मन तो बहुत चंचल है, जी..... -3

उद्धव जी बहुत बड़े ज्ञानी थे। बृहस्पती जी के समान सम्मान था उनका। वे द्वारका के मन्त्री थे व भगवान श्रीकृष्ण के सखा भी। एक बार गाँव के ग्वाले / ग्वालिनों को ज्ञान देने के लिए गये। वहाँ पर गोपियों ने उनसे कहा --- उद्धव जी मन कोई दस-बीस नहीं हैं। एक ही है और वो तो श्याम के साथ ही चला गया। आप ये जो हमें ध्यान की प्रक्रिया सिखा रहे हैं, इसे कौन करेगा? दस-बीस मन होते तो कुछ को आपकी इस प्रक्रिया में लगाते, कुछ को संसार में और श्याम का चिन्तन भी चलता रहता। किन्तु मन तो एक ही है। अब जो एक मन है, वो तो गया, श्याम के साथ। अब इस ध्यान, योग की क्रिया कौन करेगा?

सच तो यह है कि सारा खेल मन का है। आप कहीं भी हों, मन जहाँ पर होगा, आप भी वहीं पर होंगे। मन न हो तो कान सुनना बन्द कर देते हैं, आँखें देखने पर भी अनदेखा कर देती हैं। सत्संग में तो यह आम देखने को मिलता है। वक्ता अपना बोल रहे होते हैं, श्रोता सुन ही नहीं रहा होता। कान खुले हैं, वहीं पर बैठे हैं किन्तु मन वहाँ नहीं है। मन कहीं और होने से कान सुनना ही बन्द कर देता है। गोपियों की भी यही अवस्था है, मन तो श्याम के पास चला गया है। श्रृंगार करती हैं तो कहाँ का आभूषण कहाँ लगाना है, पता ही नहीं लगता उनको।

ध्रुव जी ने पाँच साल की उम्र में, छः महीनों में भगवान का दर्शन कर लिया। मन का ही तो खेल है। उन्होंने मन को ऐसा लगाया कि संकल्प कर लिया कि मेरे गुरूदेव ने जो मुझे विधि बतलाई है, उसे ही करूँगा, छोड़ूँगा नहीं। और मात्र छः महीने में भगवान मिल गये।

हमें भी जो साधना मिली है, उसके लिए हम दृढ़ नहीं होते हैं, इसलिए उसका फल भी नहीं मिलता है।

भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं -- हे अर्जुन! सुनो! जिसने अपने मन को जीत लिया है, वो ये राग, द्वेष, गर्मी-सर्दी, सुख-दुःख, मान-अपमान इन से विचलित नहीं होता।

ये सभी मन के खेल हैं। मैं, दुःखी हूँ, परेशान हूँ -- ये सब मन के विचार हैं।

जब मन हमारे वश में हो जाता है, तो मान-अपमान सभी बराबर नज़र आते हैं। 

हम आज इसी में उलझे हैं। कभी सुख, कभी दुःख, कभी मान, कभी अपमान।

किसी श्रेष्ठ वैष्णव को आदर्श बनाकर उसके आदेश के अनुसार चलें, मन को उनके आदेशों में लगायें तो भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मन वश में हो जायेगा, इससे।

श्रील ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी महाराज जी बताते हैं कि जिसने मन को जीत लिया, समझो उसने परमात्मा को पा लिया। 


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें