शनिवार, 31 अक्तूबर 2020

शीश दिये गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ।

 बात उन दिनों की है जब श्रील भक्ति विनोद ठाकुर जी के श्रीनवद्वीप धाम परिक्रमा को प्रारम्भ करने के निर्देश पर जगद्गुरु नित्यलीला प्रविष्ट ॐ विष्णुपाद 108 श्रीश्रीमद् भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर प्रभुपाद अमल कर रहे थे। उन दिनों नवद्वीप में ब्राह्मणों द्वारा कुछ ऐसी प्रथा प्रचलित थी कि, मन्दिर में प्रवेश के पूर्व, ठाकुर जी के दर्शनों के लिये मन्दिर के पण्डा अथवा महन्त को कुछ चन्दा देना पड़ता था, नहीं तो दर्शन नहीं होते थे।

श्रील प्रभुपाद ने इस प्रथा का पुरज़ोर विरोध यह कह कर किया था कि भगवान के दर्शन तो सब के लिये है। अतः श्रील प्रभुपाद जी ने मठ-मन्दिर बनाये ताकि लोग-भक्त बिना रूकावट ठाकुर के दर्शन करने आ सकें। इस बात से बहुत से महन्त/पण्डा श्रील प्रभुपाद से नाराज़ थे।
जब श्रीनवद्वीप धाम परिक्रमा का समय आया, तो सबको पता था कि श्रील
प्रभुपाद और उनके साथ सैकड़ों भक्त मायापुर से कोलद्वीप जाते हुये प्रौढ़ - माया के मन्दिर के पास से गुज़रेंगे। उस मन्दिर का रास्ता दोनों ओर मकानों से घिरी सड़क से निकलता था।

कुछ शरारती तत्त्वों ने ब्राह्मणों के कहने पर उक्त परिक्रमा कर रहे भक्तों का स्वागत ईंट-पत्थर से करने की सोची ताकि इसी हल्ले-गुल्ले में श्रील प्रभुपाद को शरीरिक तौर पर खत्म कर दिया जाये।

सभी ने गली के मकानों की छतों पर काफी सारे ईंट-पत्थर इकट्ठे कर लिये। 

जब नगर-संकीर्तन में भक्तों की टोली वहाँ पहुँची तो उस समय श्रील प्रभुपाद सभी के बीच में नृत्य-कीर्तन कर रहे थे। हरे कृष्ण महामन्त्र की ध्वनि चारों ओर गूँज रही थी।

अचानक ऊपर से ईंट-रोड़े बरसने लगे। इससे भक्तों की भीड़ तितर-बितर हो गयी। परिक्रमा के बीच एक ज़मींदार का लड़का जो श्रील प्रभुपाद जी का ही शिष्य था, सारी बात समझ गया। आपने श्रील प्रभुपाद को नज़दीक के मकान में खींच लिया। 
आपने श्रील प्रभुपाद से कहा कि आप जल्दी से वस्त्र बदलिये, आपकी सबको बहुत जरूरत है। आपका जीवन अनमोल है। साथ ही साथ आप अपने कपड़े भी उतार रहे थे। आपने अपने सफेद वस्त्र श्रील प्रभुपाद जी को पहना दिये व स्वयं उनके वस्त्र पहन लिये। आपको यह अंदेशा था कि जो लोग ऊपर से ईंटे मार रहे हैं, कुछ ही देर में नीचे आकर मार-काट करेंगे। 

आपने मठ के एक अन्य निष्ठावान शिष्य के साथ श्रीलप्रभुपाद को उस मकान के पीछे से वापिस मठ की ओर भेज दिया। 

आपकी कद-काठ श्रीलप्रभुपाद से काफी मिलती थी।

श्रील प्रभुपाद के वस्त्रों में , पगड़ी बांधे, ईंटों की बारिश में आप बाहर आ गये।
आपने अपने जीवन की परवाह न करते हुए, अपने गुरुदेव के लिये यह खतरा मोल लिया ।
अद्भुत थी आपकी गुरु-निष्ठा।

आप ही कुछ समय बाद परमपूज्यपाद श्रील भक्ति प्रज्ञान केशव गोस्वामी महाराज जी कहलाये।

किसी ने इस घटना की सूचना पुलिस को दी , पुलिस को देखकर सब उपद्रवी वहाँ से भाग खड़े हुए।

जब पुलिस ने श्रील प्रभुपाद जी को पूछा कि आपको किसी पर शक है, तो शिष्यों के कहने के बावज़ूद भी श्रील प्रभुपाद ने किसी का नाम नहीं लिया, हालांकि वे उपद्रवियों का नाम जानते थे।

शिष्यों ने श्रील प्रभुपाद से इसका कारण पूछा, तो श्रील प्रभुपाद ने कहा कि हम तो कृष्ण-प्रेम देने आये हैं, लड़ाई करने नहीं। देख लेना भविष्य में यह घटना घूमा-फिराकर हमारा ही सु-प्रचार करेगी।

अगले दिन, वहाँ के प्रसिद्ध दैनिक अखबार 'आनन्द बाज़ार पत्रिका' ने प्रथम पृष्ट पर इस घटना की विस्तृत खबर देते हुये लिखा कि आज भी नवद्वीप में श्रीकृष्ण प्रेम को देने के लिए श्रीनित्यानन्द जी हैं, और उनको चोट देने वाले जगाई-माधाई भी।

श्रीलप्रभुपाद ने अपने शिष्यों को बुलाकर कहा कि देखो जो काम हम सब 
दस साल में नहीं कर पाये, भगवान ने इस खबर के माध्यम से कुछ ही पलों में कर दिया।

जगद्-गुरु श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर प्रभुपाद जी की जय !!!

आपके प्रिय शिष्य श्रील भक्ति प्रज्ञान केशव गोस्वामी महाराज जी की जय !!!!

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