बहुत समय हो जाने पर भी जब भगवान श्रीमहाप्रभुजी ने अपने भक्त श्रीमुकुन्द दत्त को वर देने के लिये नहीं बुलाया, तो भक्तों को इसका कारण जानने की इच्छा हुई।
श्रीमहाप्रभुजी से इस प्रकारा कठोर वचन सुनकर व खेदयुक्त होकर आपने
किन्तु देह त्यागने से पहले श्रीवास पण्डित जी के माध्यम से आपने श्रीमहाप्रभु के पास अपना ये प्रश्न भिजवाया कि क्या आपको (मुकुन्द जी को) भी कभी भगवान के दर्शन होंगे?
श्रीमहाप्रभु जी बोले -- 'हाँ करोड़ जन्म के बाद वह दर्शन पायेगा।'
'करोड़ जन्म के बाद दर्शन पाऊँगा' , 'करोड़ जन्म के बाद दर्शन पाऊँगा' , 'महाप्रभु का वचन कभी झूठा नहीं होगा' -- इस प्रकार बोलते-बोलते श्रीमुकुन्द आनन्द में विभोर होकर नाचने लगे ।
आपके ये भाव देखकर अन्तर्यामी भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने उसी समय आपके सभी अपराध क्षमा कर, आपको अपने ईश्वर रूप के दर्शन कराये।
साथ ही साथ श्रीचैतन्य महाप्रभु जी बोले --'हे मुकुन्द ! सुनो ! जहाँ - जहाँ पर मेरा अवतार होगा, वहीं - वहीं पर तुम मेरे गायक के रूप में रहोगे।
आपने साथ ही साथ भक्ति शून्यता के लिये अपने आपको धिक्कार दिया तथा भक्ति योग के शुभ-प्रभाव और भक्ति हीनता के भयावह परिणामों का वर्णन करने लगे।
प्रातः स्मरणीय, श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी बताते हैं कि यही श्रीमुकुन्द दत्त जी, भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं में श्रीमधुकण्ठ के रूप में रहते हैं।
श्रील मुकुन्द दत्त जी की जय !!!!!
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