गुरुवार, 28 मई 2020

प्रेरक प्रसंग 1 -- मुझ पर कृपा करो?

जीवन की कई बार छोटी-छोटी शिक्षायें महत्वपूर्ण भी होती हैं। जैसे -

अक्सर ऐसा होता है कि जब भी हम किसी महात्मा के पास जाते हैं तो ज्यादातर प्रणाम करके हम यही कहते हैं कि महाराज जी, कृपा करो। ऐसे ही एक दिन एक व्यक्ति पूज्यपाद श्रील भक्ति सर्वस्व निष्किंचन महाराज जी के पास आया और बोला -- महाराज! कृपा करो।

निष्किंचन महाराज जी ने कहा --  मुण्डया (बेटा)! यह तो बताओ कि  कृपा का अर्थ क्या होता है? 

वो व्यक्ति चुप हो गया !

महाराज जी -- मुण्डया! तूने कहा कृपा करो। वो तो ठीक है किन्तु कृपा का अर्थ क्या होता है?

व्यक्ति - महाराज जी! कृपा कहते हैं आशीर्वाद को।

महाराज जी - नहीं। कृपा और आशीर्वाद अलग-अलग होते हैं। दोनों का अर्थ भिन्न है। 

व्यक्ति - आप ही बता दो।

महाराज जी -- कृपा का अर्थ होता है ----  'कर' + 'पा'। आप कुछ करोगे ही नहीं तो पाओगे कैसे? कुछ पाने के लिए कुछ करना होगा।

अर्थात् कृपा प्राप्त करने के लिए सेवा करनी होती है। 

हमारे पूर्वाचार्य श्रील भक्ति विनोद ठाकुर जी ने जैव धर्म ग्रन्थ में बताया है कि कृपा कैसे होगी?  शरणागत व्यक्ति पर कैसे कृपा होती है?

उन्होंने लिखा कि जब कोई बहुत उच्च कोटि के वैष्णव निजानन्द में विभोर हों, और वो प्रभु स्मरण की मस्ती में खोये हैं, और उस समय वे किसी को याद करें या किसी का स्मरण उनको हो जाये, अपने उस भक्त का समर्पण अथवा उसकी सेवा को याद करके उनका आनन्द और बढ़े, तो जितना आनन्द बढ़ता है, उतनी कृपा संचारित होती है।

यानि कि हमको ऐसे - ऐसे काम करने चाहिये कि जो उच्च कोटि के महापुरुष हैं वे जब भी भगवद्-सेवा में हों, वे हमारी सेवाओं से प्रसन्न हो कर हमें समरण करें। 

एक और बात कि श्रेष्ठ उच्च कोटि के आनन्द में बैठे हों और यह सोचें कि ओहो! इस शिष्य को मैंने उस समय माफ किया, आदि …इसके कारण संस्था का नाम खराब हो रहा है…………उससे उनको जो दुःख होगा उससे साधक को नुकसान होगा।

अत: ऐसा कुछ करें कि गुरू, वैष्णव हमसे प्रसन्न हों। तभी कृपा मिलेगी।

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