बुधवार, 8 अप्रैल 2020

श्रीभक्ति विलास गोस्वामी महाराज जी

श्री मद भक्ति विलास भारती महाराज जी ने पूर्णिमा तिथि को श्रीफटिक चन्द्र दासाधिकारी एवं माता श्रीमती गिरी वाला को अवलंबन कर उनके पुत्र रूप में लीला की..
जब आप पांच वर्ष के थे तभी आपको सपने में श्रील प्रभुपाद श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती गोस्वामी ठाकुर जी के दिव्य दर्शन प्राप्त हुए.. सात वर्ष की आयु में इनको श्रीगीता एवं श्रीभागवत अध्ययन में पुरस्कार के रूप में Gold Medal मिला ।
आपने उच्च शिक्षा प्राप्त करके अपने आपको श्रीप्रभुपाद जी के श्री चरणों में समर्पित कर दिया..... श्रील प्रभुपाद जी ने आपको दीक्षा दी और साथ ही श्रीसेवा विलास दास नाम दिया।
श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के पिता श्री जगन्नाथ मिश्र जी के नित्य सेवित श्री अधोक्षज वासुदेव मूर्ति की सेवा उनके प्राण थे।
श्रीप्रभुपाद जी की अन्तर्ध्यान लीला के बाद आपने श्रीचैतन्य मठ के मठाध्यक्ष के रूप में सेवा की....
श्रील भक्ति भूदेव श्रौती गोस्वामी महाराज जी से संन्यास ग्रहण करके त्रिदण्डीस्वामी श्रीभक्ति विलास भारती महाराज जी के नाम से गौड़ीय वैष्णव जगत में प्रसिद्ध हुए.. आपने सपने में आज्ञा पाकर श्री श्रीराधा-श्यामसुंदर जी के विग्रहों की स्थापना की..
मन्दिर में सेवा करते हुए आप अपने हाथों से चावल से कंकर छांटकर, लकड़ी की आग से, सरस्वती नदी व गंगा नदी के पानी से मिट्टी के बर्तनों में रसोई बनाकर भगवान को भोग लागते थे......और यह प्रसाद दिन में एक बार पाकर तीव्र भजन में डूबे रहते थे......
अन्त में श्रील महाराज ने अपने गुरु भाईयों को अपनी इच्छा मृत्यु की अभिलाषा जताई और अपने शिष्य श्रीमाधव दास गोस्वामी जी को समस्त आश्रम का दायित्त्व सोंपकर गौर सप्तमी तिथि में आराम से दुनिया को अलविदा कहकर चले गए ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें