
गोकुल महावन की रमण-रेति में नन्दनन्दन मदन गोपाल जी गोप-शिशुओंं के खेलते थे।
एक दिन श्रील सनातन गोस्वामीजी ने भक्तिमय नेत्रों से भगवान की इस लीला का दर्शन किया और प्रेमानन्द में विभोर हो गये।
श्रीमदन मोहन जी तो श्रील सनातन गोस्वामीजी के प्रेम के अधीन हैं -- ये
बात चारों ओर फैल गई।
माधुकरी (भिक्षा) पर जीवन धारण करने वाले श्रील सनातन गोस्वामीजी ने वृन्दावन में श्रीमदनमोहनजी का विशाल मन्दिर निर्माण करवाकर उनके लिये राज सेवा की व्यवस्था की थी। म्लेच्छों के अत्याचार होने पर श्रीमदनमोहनजी पहले भरतपुर तथा बाद में जयपुर और उस के बाद करोली में जाकर रहे हैं।
रमणरेति में जिनके दर्शन होते हैं वे रमणबिहारी राधा-मदन-मोहन जी हैं।
चिराचरित प्रथानुयायी लोग वहाँ जाकर रेति में लोट-पोट होते हैं किन्तु न जाने अप्राकृत धाम की अप्राकृत रेत को स्पर्श करने का सौभाग्य कितनों का होता है? स्पर्श होने से तो श्रीमदनमोहन जी के प्रति प्रेम उदय और उनके अतिरिक्त अन्य विषयों की प्रवृति विनष्ट हो जाती है।
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