शनिवार, 4 अप्रैल 2020

ऐसा स्थान जहाँ भगवान मदनमोहनजी का प्रेम मिल सकता है।

श्रीचैतन्य महाप्रभुजी के पार्षद, षड़गोस्वामियों में से एक अर्थात् श्रील सनातन गोस्वामीजी कुछ दिन गोकुल महावन में रहे थे। वृजवासी श्रील सनातन गोस्वामीजी को अत्यन्त श्रद्धा की दृष्टि से देखते थे और उन्हें अत्यन्त प्रिय और प्राणस्वरूप समझते थे। 
गोकुल महावन की रमण-रेति में नन्दनन्दन मदन गोपाल जी गोप-शिशुओंं के खेलते थे। 

एक दिन श्रील सनातन गोस्वामीजी ने भक्तिमय नेत्रों से भगवान की इस लीला का दर्शन किया और प्रेमानन्द में विभोर हो गये। 


उन्होंने विचार किया कि गोपशिशुओं के साथ खेल में रत अपार रूपलावण्य विशिष्ट शिशु साधारण शिशु नहीं है। एक दिन खेल समाप्त कर शिशु के वापस जाने पर श्रील सनातन गोस्वामीजी उसके पीछे-पीछे चलने लगे। वह शिशु एक मन्दिर में प्रवेश कर आँखों से ओझल हो गया। श्रील सनातन गोस्वामीजी ने मन्दिर में शिशु को न देख, श्रीमदन मोहन जी को देखा। वे मदनमोहन जी को प्रणाम कर वापिस आ गये। 

श्रीमदन मोहन जी तो श्रील सनातन गोस्वामीजी के प्रेम के अधीन हैं -- ये
बात चारों ओर फैल गई। 

माधुकरी (भिक्षा) पर जीवन धारण करने वाले श्रील सनातन गोस्वामीजी ने वृन्दावन में श्रीमदनमोहनजी का विशाल मन्दिर निर्माण करवाकर उनके लिये राज सेवा की व्यवस्था की थी। म्लेच्छों के अत्याचार होने पर श्रीमदनमोहनजी पहले भरतपुर तथा बाद में जयपुर और उस के बाद करोली में जाकर रहे हैं।

रमणरेति में जिनके दर्शन होते हैं वे रमणबिहारी राधा-मदन-मोहन जी हैं। 

चिराचरित प्रथानुयायी लोग वहाँ जाकर रेति में लोट-पोट होते हैं किन्तु न जाने अप्राकृत धाम की अप्राकृत रेत को स्पर्श करने का सौभाग्य कितनों का होता है? स्पर्श होने से तो श्रीमदनमोहन जी के प्रति प्रेम उदय और उनके अतिरिक्त अन्य विषयों की प्रवृति विनष्ट हो जाती है।

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